Ovulation
19 September 2023 को अपडेट किया गया
ओव्यूलेशन के बाद प्रेग्नेंसी हुई है या नहीं और इसके क्या लक्षण होते हैं इसे समझने के लिए सबसे पहले यह जानना होगा कि ओव्यूलेशन क्या (Ovulation meaning in Hindi) है. सरल शब्दों में कहें तो एक फ़ीमेल रिप्रोडक्टिव सिस्टम का सबसे फर्टाइल समय यानी कि वो दिन जब गर्भधारण होने के चांसेस सबसे ज़्यादा होते हैं उन्हें आप ओव्यूलेशन (Ovualtion in Hindi) कह सकते हैं. ओव्यूलेशन के दौरान एक महिला की ओवरी एग्स रिलीज़ करती हैं जो वहाँ से ट्रेवल करते हुए फैलोपियन ट्यूब्स में आते हैं और यदि इस प्रोसेस के एक निश्चित समय के भीतर पति-पत्नी सेक्स करें तो प्रेग्नेंसी होने की संभावना सबसे अधिक होती है.
ओव्यूलेशन मासिक चक्र के लगभग बीच में होता है. इसलिए 28 दिन के साइकिल में यह 14वें दिन के आसपास होगा, हालाँकि हर महिला के मेंस्ट्रूअल साइकिल के अनुसार यह दिन थोड़ा आगे-पीछे हो सकता है.
फर्टाइल विंडो वह समय है जिस दौरान प्रेग्नेंसी के चांसेज सबसे ज़्यादा बढ़ जाते हैं जिसमें मुख्य रूप से ओव्यूलेशन से पहले और उसके बाद के दिन शामिल हैं. स्पर्म किसी भी महिला के रिप्रोडक्टिवव ट्रैक में लगभग 5 दिनों तक जीवित रह सकता है. वहीं, एक एग भी ओव्यूलेशन के बाद लगभग 12 से 24 घंटों तक जीवित रहता है. इसलिए ओव्यूलेशन से लगभग 5 दिन पहले और ओव्यूलेशन के 1 दिन बाद तक का समय इस फर्टाइल विंडो में काउंट किया जाता है जिसे परिवार की इच्छा रखने वाले कपल को मिस नहीं करना चाहिए.
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गर्भधारण की सबसे अधिक संभावना ओव्यूलेशन और उससे पहले के दो दिनों में होती है. ये सबसे ज़्यादा फर्टाइल दिन माने जाते हैं.
गर्भधारण के लिए यह पूरी फर्टाइल विंडो की अवधि महत्वपूर्ण है हालाँकि इसके आगे और पीछे भी प्रेग्नेंसी हो सकती है जिसके चांसेज इन दिनों की अपेक्षा कम होते हैं.
आइये अब समझते हैं कि ओव्यूलेशन के बाद प्रेग्नेंसी कंफर्म होने में कितना समय लगता है.
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एक कंफर्म्ड़ प्रेग्नेंसी का मतलब है, ओव्यूलेशन के दौरान रिलीज़ हुए अंडे का स्पर्म के साथ फ्यूज होना और फिर इस फर्टिलाइज्ड एग का यूट्रीन वॉल में सफलतापूर्वक इंप्लांट हो जाना. इस पूरी प्रोसेस में लगने वाला अनुमानित समय इस प्रकार है.
मासिक चक्र के बीच में या अगले साइकिल की डेट से लगभग 14 दिन पहले होता है.
ओव्यूलेशन होने के बाद रिलीज़ हुए एग्ज़ लगभग 12 से 24 घंटों तक फर्टिलाइज़ेशन के लिए जीवित रहते हैं. अगर रिप्रोडक्टिव ट्रैक में पहले से ही स्पर्म मौजूद हैं तो भी ये आपस में फर्टिलाइज हो सकते हैं जिससे प्रेग्नेंसी हो जाएगी.
फर्टिलाइज़ेशन के बाद, फर्टिलाइज्ड अंडा जिसे जाइगोट कहते हैं विभाजित होना शुरू होता है जिससे एक ब्लास्टोसिस्ट (blastocyst) बनता है. इसके बाद ब्लास्टोसिस्ट फैलोपियन ट्यूब से होता हुआ यूटरस में चला जाता है जहाँ यह गर्भाशय की अंदरूनी परत जिसे यूट्रीन वॉल कहते हैं उससे चिपक जाता है और इसे इंप्लांटेशन कहते हैं. ओव्यूलेशन के बाद इंप्लांटेशन होने में लगभग 6 से 10 दिन लगते हैं और इसके बाद गर्भधारण हो जाता है.
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तो इस तरह
1. ओव्यूलेशन मेंस्ट्रूअल साइकिल के लगभग बीच में होता है.
2. ओव्यूलेशन के 12 से 24 घंटों के भीतर फर्टिलाइज़ेशन हो सकता है.
3. इंप्लांटेशन होने में ओव्यूलेशन के बाद लगभग 6-10 दिन लगते हैं.
इंप्लांटेशन होने के बाद बॉडी एचसीजी हार्मोन बनाना शुरू कर देती है जो तेज़ी से बढ़ता है. लगभग एक हफ़्ते के बाद शरीर में एचसीजी (human chorionic gonadotropin) का लेवल इतना बढ़ जाता है कि इसे ब्लड टेस्ट से डिटेक्ट किया जा सकता है. ये ओव्यूलेशन के बाद प्रेग्नेंसी कंफर्म होने का (after ovulation pregnancy symptoms in Hindi) पहला लक्षण है लेकिन इसके लिए आपको ब्लड टेस्ट करवाना पड़ता है. एचसीजी बेस्ड टेस्ट इस तरह डिज़ाइन किए जाते हैं कि वे इंप्लांटेशन के 7-12 दिनों के बाद सटीक परिणाम दे सकते हैं और यह समय लगभग अगले पीरियड्स की डेट के आसपास का होता है. हालाँकि, प्रेग्नेंसी हो गयी है इसकी पुष्टि के लिए अगले पीरियड्स का मिस होना ज़रूरी है जिसके बाद
प्रेग्नेंसी टेस्ट किट (Pregnancy test kit) की हेल्प से इसे कंफर्म करना चाहिए.
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ओव्यूलेशन के बाद गर्भधारण होने की कंडीशन में कुछ अर्ली प्रेग्नेंसी सिंपटम्स (pregnancy symptoms after ovulation day by day in Hindi) भी उभर सकते हैं जो स्पष्ट रूप से महसूस किए जा सकते हैं; जैसे कि-
1. ब्रेस्ट टेंडरनेस जिसमें स्तन नॉर्मल से ज़्यादा कोमल और सूजे हुए से महसूस होते हैं. साथ ही, निपल्स का रंग सामान्य से ज़्यादा गहरा दिखने लगता है.
2. कई महिलाओं को प्रेग्नेंसी की शुरुआत में बहुत ज़्यादा थकान का अनुभव भी होता है.
3. प्रेग्नेंसी एस्टेब्लिश होने के बाद सामान्य से अधिक बार यूरिन पास करने की इच्छा भी हो सकती है.
4. सुबह के वक़्त उल्टी या उबकाई का आना जिसे मॉर्निंग सिकनेस कहा जाता है, महसूस हो सकती है.
5. खाने के प्रति आपकी इच्छा में बदलाव; जैसे कि कुछ ख़ास तरह के फूड आइटम्स से परेशानी होना. साथ ही, कुछ नए स्वाद वाले फूड आइटम्स को खाने की तेज़ इच्छा होना.
6. भोजन के प्रति अरुचि और मुँह का स्वाद मेटेलिक या कसैला-सा लगना.
7. कुछ महिलाओं को गर्भाशय या पेल्विक एरिया में हल्की ऐंठन और मरोड़ का अनुभव होता है क्योंकि गर्भाशय अब खिंचने और बढ़ने लगता है.
8. कुछ ख़ास ख़ुशबुओं के प्रति सेंसिटिविटी का बढ़ना और कुछ के प्रति अचानक सेंसिटिविटी महसूस होना.
9. हार्मोनल चेंजेज़ के कारण मूड में बदलाव, चिड़चिड़ापन या इमोशनल फील होना.
10. हार्मोनल परिवर्तन के कारण डाइज़ेशन धीमा हो जाता है जिससे कई बार कब्ज़ भी होने लगता है.
11. बेसल बॉडी टेम्परेचर का बढ़ा हुआ रहना.
प्रेग्नेंसी के लक्षण सभी महिलाओं में अलग-अलग हो सकते हैं और कई बार इनमें से कोई भी लक्षण दिखाई नहीं देता है. कई बार ये लक्षण पीरियड्स के लक्षणों की तरह भी होते हैं. इसलिए पीरियड्स का मिस होना ही प्रेग्नेंसी का सबसे कंफर्म्ड़ साइन माना जाता है. अगर आपको लग रहा है कि आप प्रेग्नेंट हैं तो इसके लिए एचसीजी बेस्ड ब्लड टेस्ट करवा सकते हैं या फिर कुछ दिन इंतज़ार करें और पीरियड मिस होने पर होम प्रेग्नेंसी टेस्ट (Pregnancy test kit) का का यूज़ करें.
1. Su RW, Fazleabas AT. (2015). Implantation and Establishment of Pregnancy in Human and Nonhuman Primates. Adv Anat Embryol Cell Biol.
2. Gadsby R, Ivanova D, Trevelyan E, Hutton JL, Johnson S. (2021). The onset of nausea and vomiting of pregnancy: a prospective cohort study. BMC Pregnancy Childbirth.
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Kavita Uprety
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