Yoga
21 September 2023 को अपडेट किया गया
योग स्वस्थ जीवन का सूत्र है और कई सारी जटिल बीमारियाँ को योगाभ्यास से कम समय में ठीक किया जा सकता है. यहाँ आपको बताएँगे पीसीओएस में लाभकारी कुछ ऐसे ही योगासनों (PCOS yoga in hindi) के बारे में जिनसे आप इसके लक्षणों को ठीक कर सकते हैं.
पीसीओएस के लिए कुछ ख़ास प्राणायाम और योग मुद्राओं का (PCOS ke liye yoga in hindi) नियमित अभ्यास करना चाहिए. प्रत्येक मुद्रा को 8-10 बार तक करना लाभकारी होता है. चलिए पीसीओएस को कंट्रोल करने वाले बेस्ट योगासन के बारे में जानते हैं!
इसे बटरफ्लाई पोज़ भी कहा जाता है जिसमें पैरों के तलवों को सामने की ओर जोड़कर, घुटनों को तितली के पंख की तरह ऊपर नीचे करते हैं. यह पेल्विक एरिया में ब्लड सर्कुलेशन को बढाता है और इस एरिया की मसल्स को रिलेक्स करता है. इस पोज़ से (Yoga for pcos in hindi) हार्मोनल असंतुलन को कम करने में मदद मिलती है.
इसे रिक्लाइनिंग बाउंड एंगल पोज़ (Reclining bound angle pose) के रूप में भी जाना जाता है. यह बद्ध कोणासन का ही एक बदला हुआ रूप है जिसे आप बैठने के बजाय लेट कर करते हैं. यह ओवरीज़ को स्टिमुलेट करता है और पेल्विक एरिया में ब्लड सर्कुलेशन बढ़ाकर पीरियड्स से जुड़ी दिक्कतों को घटाता है.
इसे भारद्वाज ट्विस्ट (Bharadvaja's Twist) भी कहते हैं, जिसमें रीढ़ की हड्डी को सीधा रखते हुए कमर से ऊपर के हिस्से को धीरे से दाएँ और बाएँ तरफ मोड़ते हैं. धड़ को दोनों ओर ट्विस्ट करने से पेट के ऑर्गन्स स्टिमुलेट होते हैं और इससे ब्लड सर्कुलेशन, डाइज़ेशन और हार्मोनल बैलेंस को बेहतर बनाने में मदद मिलती है.
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इसमें, पेट के बल लेट कर, भुजंग यानी साँप के फन की तरह बॉडी के ऊपर के हिस्से को धीरे-धीरे ऊपर उठाते हैं. इससे ओवरीज़ स्टिम्युलेट होती हैं और हार्मोनल संतुलन इंप्रूव होने के साथ पेल्विक एरिया में ब्लड सर्कुलेशन भी बढ़ता है.
नाव की तरह शरीर को मोड़ने के कारण इसे बोट पोज़ भी कहते हैं. इस मुद्रा में पीठ के बल लेटकर पैरों और शरीर के ऊपरी हिस्से को नाव की तरह जमीन से ऊपर उठाते हैं. इससे पेल्विक एरिया स्ट्रांग होता है और ओवरीज़ तथा यूटरस को बल मिलने से प्रेग्नेंसी (yoga for pcos to get pregnant in hindi) की संभावनाएँ बढ़ती हैं.
धनुष की तरह बॉडी को मोड़ने वाली इस मुद्रा को बो पोज़ भी कहते हैं जिसमें पेट के बल लेटकर, घुटनों को पीछे की ओर मोड़कर हाथों से पकड़ते हैं. इसमें चेस्ट और जांघों को जमीन से ऊपर उठाने में पेट के सभी ऑर्गन्स स्टिमुलेट होते हैं. ओवरीज़ को बल मिलता है और हार्मोनल असंतुलन को नियंत्रित करने में मदद मिलती है.
इन्हें ‘कैट-काऊ सीक्वेंस’ भी कहा जाता है जो एक फ़्लो में किए जाते हैं. मार्जरीआसन में जहाँ पीठ को मोड़ना और सिर को नीचे झुकाने से रीढ़ की हड्डी का लचीलापन बढ़ता है. वहीं, बिटिलासन में पीछे की ओर हल्का झुकने और सिर को ऊपर उठाने से ब्लड सर्कुलेशन बढ़ता है. इससे पेल्विक एरिया मज़बूत होता है और हार्मोनल बैलेंस बढ़ता है.
वाइड-लेग्ड फॉरवर्ड बैंड के नाम से जाने जानी वाली इस मुद्रा में पैरों को फैलाकर खड़े होते हैं और कूल्हों से आगे की ओर झुकते हैं. यह पेट के अंगों को स्टिमुलेट करता है, पेल्विक एरिया में ब्लड सर्कुलेशन बढ़ाता है और स्ट्रेस को कम करने में मददगार है.
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पद्मासन, या लोटस पोज़ बैठने की एक मुद्रा है जिसमें पैरों को एक दूसरे के ऊपर क्रॉस करते हुए जाँघों पर रख कर बैठा जाता है. इससे पेल्विक क्षेत्र में ब्लड सर्कुलेशन बढ़ता है. साथ ही, बॉडी रिलेक्स होती है और स्ट्रेस में कमी आती है.
‘निस्पंद भाव’ आयुर्वेदिक कांसेप्ट है जिसमें बिना हिला-डुले कुछ मिनट्स तक बैठ कर शारीरिक और मानसिक दोनों स्तर पर संतुलन और सामंजस्य लाने की प्रैक्टिस की जाती है. इससे स्ट्रेस मैनेजमेंट और पॉज़िटिव थिंकिंग बढ़ती है.
नाड़ी शोधन, प्राणायाम का ही एक प्रकार है जिसमें दोनों नोस्ट्रेल्स से बारी-बारी साँस ली जाती है और धीरे- धीरे साँस लेने-छोड़ने की गति के साथ मन को एकाग्र किया जाता है. इस तरह साँस के प्रवाह को नियंत्रित करके, नाड़ी शोधन से शरीर की ऊर्जा संतुलित होती है और शरीर में एनर्जी बढ़ती है.
मलासन जिसे यौगिक स्क्वाट (Yogic Squat) भी कहते हैं इसमें पैरों के बल बैठकर हाथों को छाती के सामने जोड़कर रखते है; जैसे- इंडियन टॉयलेट में बैठा जाता है. इससे पेल्विक एरिया में ब्लड सर्कुलेशन बढ़ता है, ओवरीज़ स्टिमुलेट होती हैं और हार्मोनल बैलेंस लाने में मदद मिलती है.
सेतुबन्ध सर्वांगासन, जिसे ब्रिज पोज़ भी कहते हैं एक सॉफ्ट बैकबेंड है जो पेट के ऑर्गन्स और थायराइड ग्लेन्ड को स्टिमुलेट करने में मदद करता है. यह हार्मोनल संतुलन लाने में भी सहायक है. इससे पेल्विक एरिया में ब्लड सर्कुलेशन बढ़ता है जिसे पीरियड्स को रेगुलेट होने और स्ट्रेस को कम करने में मदद मिलती है.
सीटेड फॉरवर्ड बैंड पोज़ इसका दूसरा नाम है जिसमें पैरों को फैलाकर और कूल्हों को आगे की ओर मोड़कर जमीन पर बैठा जाता है. पश्चिमोत्तानासन से पेट के ऑर्गन्स और ओवरीज़ को बल मिलता है जिसे हार्मोनल संतुलन बढ़ता है.
शवासन एक डीप रिलेक्सेशन टेक्निक है जिसमें आरामदायक स्थिति में लेटकर, साँसों पर ध्यान टिकाया जाता है. पीसीओएस में अक्सर हार्मोनल असंतुलन और स्ट्रेस की समस्या रहती है जिसे शवासन से कंट्रोल किया जा सकता है.
सूर्य नमस्कार सोलह मुद्राओं का एक ऐसा क्रम है जिसमें शरीर की माँसपेशियों, जोड़ों में लचीलेपन के अलावा साँस के नियंत्रण और मानसिक शांति को बल मिलता है. इसके नियमित अभ्यास से स्ट्रेस में कमी और ब्लड सर्कुलेशन में सुधार तथा हार्मोनल संतुलन लाने में मदद मिलती है.
अनुलोम-विलोम, अल्टर्नेट नोस्ट्रेल ब्रीदिंग की एक यौगिक टेक्निक है जो शरीर के एनर्जी चैनल्स में संतुलन को बढ़ाती है और स्ट्रेस को कम करती है. लयबद्ध रूप से साँस लेने से शरीर में बेहतर सामंजस्य बनता है और प्राण ऊर्जा बढ़ती है.
कपालभाति भी साँस लेने की एक और टेक्निक है जिसमें झटके के साथ पेट को अंदर खींचकर साँस छोड़ी जाती है और उसके बाद नॉर्मल रूप से गहरी साँस अंदर ली जाती है. इससे पेट की मसल्स स्टिमुलेट होती हैं और पेल्विक एरिया में मजबूती आती है.
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पीसीओएस में लाइफस्टाइल चेंजेज़ और योग के इन आसनों के नियमित अभ्यास से आपको बेहद मदद मिल सकती है लेकिन इन्हें हमेशा किसी अनुभवी गुरु से सीखने के बाद ही शुरू करें. इसके अलावा कुछ आयुर्वेदिक जड़ी-बूटियाँ; जैसे कि मंजिष्ठा, शतावरी, शंखपुष्पी और कैमोमाइल से बने माइलो 100% नेचुरल पीसीओएस और पीसीओडी (Mylo 100% PCOS & PCOD Tea) बैग्स और एक्टिव फोलेट से बनी हुई माइलो की च्युएबल मायोइनोसिटोल टैबलेट (Myo-inositol Chewable Tablets for PCOS & PCOD) इस समस्या का एक और प्राकृतिक समाधान हैं जिन्हें आप आज़मा सकते हैं.
1. Thakur D, Saurabh Singh DS, Tripathi DM, Lufang D.(2021) Effect of yoga on polycystic ovarian syndrome: A systematic review. J Bodyw Mov Ther
2. Selvaraj V, Vanitha J, Dhanaraj FM, Sekar P, Babu AR. (2020) Impact of yoga and exercises on polycystic ovarian syndrome risk among adolescent schoolgirls in South India. Health Sci Rep
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