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6 December 2023 को अपडेट किया गया
हम में से अधिकतर लोगों ने बचपन में जो कहानियों सुनी हैं उनमें एक नाम जो आपको अभी तक याद होगा वो है- पंचतंत्र की कहानियाँ (panchtantra ki kahaniyan). दादी-नानी के मुँह से सुनने के बाद जब टेलीविज़न का ज़माना आया तो इन्हें (panchtantra kahani) टीवी पर भी खूब पसंद किया गया.
पंचतंत्र की कहानियाँ (panchtantra ki kahani) प्राचीन भारत में लिखी गयी दंतकथाओं का एक ऐसा संग्रह है जिसमें कहानियों के द्वारा अच्छे और नैतिक आचरण का ज्ञान दिया गया है. अक्सर लोग जानना चाहते हैं कि मोरल और प्रैक्टिकल ज्ञान से भरी पंचतंत्र की (Hindi story panchtantra) इन कहानियों के (panchtantra ke lekhak kaun hai) लेखक कौन हैं? ये कहानियाँ पंडित विष्णु शर्मा ने लिखीं (panchtantra ke lekhak) और किताब को नाम दिया पंचतंत्र की कहानियाँ (panchtantra ki kahaniya in Hindi) जिसमें पाँच पुस्तकें आती हैं.
आइये इन में से कुछ कहानियाँ (panchatantra short stories in Hindi with moral) आपको यहाँ बताते हैं.
बहुत समय पहले, एक शहर के पास एक मंदिर बन रहा था जिसमें मज़दूर लकड़ी की कई चीज़ें बनाने के लिए लट्ठों को चीर रहे थे. एक दिन जब सारे मज़दूर खाने के लिए गए तो उस दौरान एक लठ्टा जो आधा चिरा हुआ था, उसमें उन्होंने लकड़ी का खूँटा फँसा दिया ताकि वापस आने पर उसे काटने में आसानी रहे.
उसी बीच वहाँ बंदरों का एक ग्रुप आया जिसमें एक महा-शरारती बंदर था. बिना मतलब की खुराफ़ात करना उसकी आदत थी. तो सभी बंदर वहाँ पड़ी चीज़ों को बिना छुए पेड़ों की ओर चले गए लेकिन वह शैतान बंदर छुप कर वहीं रुक गया और लट्ठों को देखने लगा.
तभी उसने उस अधचिरे लठ्टे को देखा जिसके बीच में खूँटा फँसा हुआ था. कुछ समझ न आने पर उसने पास पड़ी आरी को उठाकर उस लकड़ी पर रगड़ा जिससे अजीब-सी आवाज़ आई. अब उसने चिढ़ कर आरी पटक दी और सोचा कि इस खूँटे को लठ्टे से निकाल दूँ. यह सोचकर वह ज़ोर से खूँटा हिलाने लगा और ऐसा करते हुए खूँटा बाहर निकल आया और उसकी पूँछ लकड़ी के दो पाटों के बीच में फँस गयी. बंदर दर्द से चिल्लाया लेकिन तभी वहाँ मज़दूर आ गए. अब बंदर ने भागने लिए फँसी हुई पूँछ के साथ जैसे ही ज़ोर लगाया तो उसकी पूँछ टूट गई और वह दर्द से चीखता हुआ अपनी टूटी पूँछ लेकर भाग गया.
इस कहानी से हमें यह सीख मिलती है कि जिस काम की जानकारी न हो उसे नहीं करना चाहिए. बेमतलब का काम करने से कई बार आप बड़ी मुसीबत में भी पड़ सकते हैं.
बहुत पहले किसी गाँव के मंदिर में देव शर्मा नामक साधु रहता थे जिसका गाँव में सभी लोग सम्मान करते थे. उन्हें भेंट में तरह- तरह के कपड़े, उपहार और पैसे मिलते थे और इस तरह साधु ने काफ़ी धन इकट्ठा कर लिया था. साधु हमेशा अपने धन की सुरक्षा के लिए चिंतित रहते थे और वे अपने धन को हमेशा एक पोटली में अपने साथ रखते थे.
उसी गाँव में एक ठग था जिसकी नज़र साधु के धन पर थी. वह ठग एक छात्र बनकर साधु के पास गया और उसे शिष्य बनाने की विनती की. साधु ने उसकी विनती मानकर उसे अपने साथ रख लिया.
अब ठग, मंदिर और साधु के सभी काम करने लगा और अपनी सेवा से जल्दी ही उनका विश्वासपात्र बन गया. एक दिन जब साधु को पास के एक गाँव में जाना था तो वह अपने इस शिष्य को भी साथ ले गए. रास्ते में एक नदी पड़ी और साधु ने स्नान करने की. उसने अपने धन की गठरी को कम्बल में लपेटा और नदी किनारे रख दिया और शिष्य बने ठग से रखवाली करने को कहा. ठग को तो हमेशा से इसी घड़ी का इंतज़ार था. जैसे ही साधु ने नदी में डुबकी लगाई ठग रुपयों की गठरी लेकर रफ़ू-चक्कर हो गया.
किसी अनजान व्यक्ति की बातों में आकर उस पर आँख मूँद कर यक़ीन नहीं करना चाहिए.
एक समय की बात है. जीर्णधन नामक एक बनिये का लड़का था जिसने धन कमाने के लिए परदेश जाने का सोचा. अपने घर में पड़ी एक मन की भारी लोहे की तराजू को महाजन के पास धरोहर रखकर वह परदेश चला गया. जब वह वापस आया और महाजन से अपनी धरोहर माँगी तो महाजन ने बताया कि उसकी तराजू चूहे खा गए. लड़का समझ गया कि महाजन की नीयत में खोट आ गया है. इसलिए कुछ सोचकर उसने कहा, कोई बात नहीं. चूहों ने खा ली तो इसमें तुम्हारी क्या ग़लती?
कुछ देर के बाद उसने महाजन से कहा कि “मैं नदी में नहाने के लिए जाना चाहता हूँ और क्या तुम अपने बेटे को मेरे साथ भेज दोगे?" महाजन ने अपने बेटे को उसके साथ भेज दिया.
उसने उसे वहाँ से कुछ दूर एक गुफा में कैद कर दिया. वापस आने पर जब महाजन ने पूछा-"मेरा बेटा कहाँ है तो बनिये ने कहा "उसे चील उठा कर ले गई"
महाजन बोला ये कैसे संभव है? चील इतने बड़े लड़के को कैसे उठा कर ले जा सकती है?"
बनिया बोला “बिल्कुल वैसे ही जैसे मन भर भारी तराजू को चूहे खा गए. तुझे बेटा चाहिए तो तराजू वापस कर".
दोनों का झगड़ा महल तक पहुँचा, जहाँ राजा के सामने महाजन ने बनिए की शिकायत की.
राजा ने बनिये को लड़का लौटाने को कहा तो बनिए ने उसे भी चील के उठा ले जाने की बात बताई.
राजा ने फिर कहा “चील कैसे बच्चे को उठा सकती है?” इस पर बनिये ने कहा “महाराज बिल्कुल वैसे ही जैसे मन भर के तराजू को चूहे खा सकते हैं.”
इस पर राजा ने जब बनिये से पूछा तो बनिए को सारी बात बतानी पड़ी और उसकी पोल खुल गयी.
जो जैसा करता है उसके साथ वैसा ही होता है.
एक घने जंगल में एक पेड़ पर चिड़िया का एक जोड़ा घोंसला बना कर बड़े सुख से रहता था. फिर जाड़े का मौसम आया. बहुत ठंड पड़ने लगी और बारिश के साथ बर्फीली हवाएँ भी चलने लगीं लेकिन वो अपने घोंसले में आराम से रह रहे थे. एक दिन कटीली ठंडी हवा और बारिश में भीग कर ठिठुरता हुआ एक बंदर वहाँ आया और उस पेड़ की शाख़ पर आ बैठा. ठंड से उसके दाँत किटकिटा रहे थे. उसकी हालत देख कर चिड़िया बोली " तुम कौन हो भाई? देखने में तो मनुष्य जैसे दिखते हो. यहाँ ठंड क्यों खा रहे हो अपने हाथ-पाँव से कहीं घर क्यों नहीं बना लेते.”
इस पर बंदर चिढ़ कर बोला " तू चुप रह और अपना काम कर. मेरी मज़ाक क्यों उड़ाती है?"
चिड़िया फिर भी उसकी भलाई समझ कर कुछ-कुछ बातें कहती गई. बंदर चिड़िया की बातों से चिढ़ गया और गुस्से से उसके घोंसले को तोड़ डाला. अब चिड़िया का घरौंदा टूट गया जिसमें वह चिड़े के साथ आराम से रहती थी और वह बहुत दु:खी हो गयी.
सीख हमेशा बुद्धिमान को देनी चाहिए क्योंकि समझदार ही सीख को समझ पाते हैं. मूर्ख और दुष्ट व्यक्ति को बताई गयी अच्छी शिक्षा से कई बार स्वयं का ही नुक़सान हो जाता है.
चतुर्दन्त नाम का एक विशाल हाथी अपने झुंड का मुखिया था. एक बार अकाल के कारण जब सब तालाब सूख गये तो हाथियों ने मिलकर उससे कहा कि प्राण रक्षा के लिए उन्हें किसी बड़े तालाब की ओर चलना चाहिए. इस पर उसने एक हमेशा पानी से भरे रहने वाले तालाब के बारे में बताया और सबको वहीं चलने के लिए कहा. एक बेहद लम्बे सफ़र के बाद जब वो वहाँ पहुँचे तो देखा कि तालाब पानी से भरा था. उन्होंने दिन भर पानी में खेल किए.
उस तालाब के चारों तरफ़ खरगोशों के बिल थे जिससे ज़मीन पोली हो गई थी और हाथियों के चलने से वह बिल टूट गए. इसमें कई खरगोश कुचले गये और कुछ मर भी गये.
हाथियों के जाने के बाद बचे हुए चोटिल खरगोशों ने एक बैठक की और सोचा कि आस-पास कोई और तालाब न होने के कारण हाथी अब रोज़ यहीं आएँगे जिससे जल्दी ही सब खरगोशों का खात्मा हो जाएगा.
एक ने कहा अब हमें इस जगह को छोड़ देना चाहिए ताकि जान बच सके. लेकिन बाकियों से कहा "हम अपने पूर्वजों के स्थान को नहीं छोड़ सकते"
ऐसे में उन्होंने एक उपाय सोचा कि एक चतुर दूत को हाथियों के मुखिया के पास भेजकर ये कहा जाए कि यह तालाब चाँद का है और वहाँ बैठा खरगोश यह नहीं चाहता कि हाथी इस तालाब में आएँ. इसके बाद लम्बकर्ण नाम के खरगोश को दूत बनाकर भेजा गया जो तालाब के समीप एक ऊँचे टीले पर बैठ गया. जब हाथियों का झुण्ड वहाँ से गुज़रा तो उसने वही बात दोहराई.
हाथियों के मुखिया के पूछने पर उसने कहा मैं चाँद में रहता हूँ और चन्द्र भगवान के कहने पर तुम्हें ये बताने आया हूँ. मुखिया ने फिर पूछा कि चन्द्र भगवान इस समय कहाँ है?"
लम्बकर्ण ने कहा वह इस समय वह तालाब में ही हैं. कल तुम्हारे पैरों से खरगोशों के बिल टूट गए और उनकी प्रार्थना सुनकर वो यहाँ आये हैं और मुझे ये संदेश ले कर भेजा है. हाथी ने फिर कहा “तुम मुझे उनके दर्शन करा दो तो मैं अपने दल के साथ वापस चला जाऊँगा.
लम्बकर्ण हाथियों के मुखिया को तालाब के किनारे ले गया और पानी में चाँद की छाया दिखाई. मुखिया को उसकी बात पर यक़ीन हो गया और उस के बाद कभी हाथियों का झुंड उस तालाब पर नहीं आया.
पंचतंत्र की इस कहानी की सीख (Panchatantra short stories in Hindi with moral)
कठिन समय में भी अपनी सूझ-बूझ नहीं खोनी चाहिए.
पंचतंत्र कि ये कहानियाँ मानव व्यवहार के कई पहलुओं को संबोधित करते हुए चतुराई, मित्रता, नेतृत्व और नैतिकता पर मूल्यवान सबक देती हैं. बच्चों के मन पर कहानियों के द्वारा इन शिक्षाओं का गहरा असर डालने के लिए उन्हें बचपन से ही पंचतंत्र की कहानियाँ ज़रूर सुनाएँ.
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Kavita Uprety
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