PCOS & PCOD
5 September 2023 को अपडेट किया गया
आयुर्वेद के अनुसार पीसीओएस कफ़ और वात के दूषित होने के कारण होता है जिसका मुख्य कारण है खान-पान से जुड़े कारण और सिडेंटरी लाइफस्टाइल. इससे पाचन खराब होता है और शरीर में टॉक्सिन जमा होने के अलावा मासिक से जुड़ी दिक्कतें और अनियमितताएँ होने लगती हैं. इस सब से निज़ात पाने के लिए आयुर्वेद में (Pcos treatment in ayurveda in hindi) व्यक्ति को उसकी प्रकृति के अनुसार आहार-विहार, आयुर्वेदिक दवाएँ और लाइफस्टाइल में बदलाव लाने की सलाह दी जाती है.
पॉलीसिस्टिक ओवरी सिंड्रोम (पीसीओएस) के इलाज के लिए आयुर्वेदिक ट्रीटमेंट में (treatment of pcos in ayurveda in hindi) सबसे पहले शरीर और दिमाग़ में एक सही संतुलन बनाने का प्रयास किया जाता है. जहाँ शरीर के लिए हेल्दी डाइट लेने के नियम हैं. वहीं, हार्मोन रेगुलेशन और मेटाबॉलिज्म को मज़बूत करने के लिए हर्बल सप्लीमेंट दिये जाते हैं और योग तथा ध्यान जैसी स्ट्रेस मैनेजमेंट टेक्निक से व्यक्ति की प्रकृति के अनुरूप एक होलेस्टिक प्लान बनाकर का इलाज़ किया जाता है.
आयुर्वेदिक चिकित्सा में शरीर की तीन फंडामेंटल बायोएनर्जी मानी गयी हैं- वात, कफ़ और पित्त. इनमें इंबैलेंस आने पर पीसीओएस के लक्षण पैदा होने लगते हैं जो इस प्रकार हैं;
अर्थव क्षय को आयुर्वेद में ऑलिगोमेनोरिया या अनियमित पीरियड्स के रूप में जाना जाता है. इसका अर्थ है पीरियड्स का अपने नियमित अंतराल पर न होना या फिर बिल्कुल ही बंद हो जाना. ऐसा अक्सर शरीर में कफ असंतुलन के कारण होता है.
कफ असंतुलन का मतलब कफ की अधिकता से जुड़े हुए दोष का बढ़ जाना है; जैसे- भारीपन, ठंड लगना और शरीर में ठंड का जमा हो जाना. इससे कई तरह की शारीरिक और साइकोलॉजिकल गड़बड़ियाँ पैदा होने लगती हैं.
दोष असंतुलन का अर्थ है वात, पित्त और कफ के बीच संतुलन खराब होना जिसे अनेक प्रकार की स्वास्थ्य समस्याएँ शुरू होती हैं. इसमें ख़ासतौर पर कफ असंतुलन से मेंस्ट्रूअल साइकिल इरेगुलेट हो सकता है.
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इस असंतुलन को ठीक करने के लिए है आयुर्वेद खान-पान, दिनचर्या और दवाओं द्वारा दोष संतुलन को ठीक करने पर ज़ोर देता है.
संतुलित और पौष्टिक आहार अपनाने से इंसुलिन लेवल कंट्रोल और पीसीओएस के लक्षणों में सुधार आने लगता है. अपनी डाइट में कॉम्प्लेक्स कार्बोहाइड्रेट, फाइबर युक्त फूड आइटम्स, लीन प्रोटीन और हेल्दी फैट लें जबकि प्रोसेस्ड फूड और कम ग्लाइसेमिक इंडेक्स वाली चीज़ें न खाएँ.
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कुछ औषधीय जड़ी-बूटियाँ हार्मोनल बैलेंस लाने में मदद करती हैं; जैसे- स्पियरमिंट टी और दालचीनी. इन्हें पीरियड्स और इंसुलिन सेंसिटिविटी को रेगुलेट करने में मददगार माना गया है. इसी तरह मेथी के बीज ब्लड शुगर लेवल को कंट्रोल करते हैं.
पीसीओएस मैनेजमेंट के लिए रेगुलर व्यायाम करना ज़रूरी है. इंसुलिन सेंसिटिविटी बढ़ाने और वेट कम करने के लिए एरोबिक एक्सरसाइज और स्ट्रेंथ ट्रेनिंग के अलावा योग, ध्यान और गहरी साँस लेने जैसी टेक्निक स्ट्रेस को कम करती हैं.
डिटॉक्सिफिकेशन के लिए अपने आहार में नीम और हल्दी जैसी जड़ी-बूटियों को शामिल करें जिससे शरीर में जमा टॉक्सिन्स की सफाई होती है. आप किसी अनुभवी आयुर्वेदिक चिकित्सक से पंचकर्म जैसे ट्रीटमेंट भी ले सकते हैं.
लंबे समय तक बने रहने वाला स्ट्रेस भी पीसीओएस का कारण है. माइंडफुलनेस प्रेक्टिस, ध्यान, गहरी नींद सोना और अपनी हॉबी को एंजॉय करके आप इस स्ट्रेस को कम कर सकते हैं.
अब बात करेंगे पीसीओएस के लिए कौन-सी आयुर्वेदिक दवाएँ लाभकारी हैं.
अश्वगंधा के एडाप्टोजेनिक गुण स्ट्रेस को कम करने और हार्मोन्स को संतुलित करने में मदद करते हैं यह पीरियड्स को रेगुलेट करने, कोर्टिसोल के लेवल को घटाने और इंसुलिन सेंसिटिविटी में सुधार करने में मदद करता है.
शतावरी फ़ीमेल रिप्रोडक्टिव सिस्टम के लिए एक कायाकल्प जड़ी-बूटी है जो हार्मोनल संतुलन को बढ़ाती है और फर्टिलिटी में सुधार करती है. इससे न केवल पीरियड्स रेगुलेट होते हैं बल्कि; पीसीओएस के लक्षणों में भी राहत मिलती है.
गुडुची अपने इम्यून-मॉड्यूलेटिंग गुणों के लिए जाना जाता है. यह पीसीओएस से जुड़े इंसुलिन रेसिस्टेंस और सूजन जैसे लक्षणों को कम करने में फ़ायदेमंद है.
त्रिफला तीन फलों से बनाया गया पावडर है- आँवला, (Emblica officinalis), विभीतकी या बहेरा (Terminalia bellirica) और हरीतकी या हरड़ (Terminalia chebula). इसका उपयोग डाइज़ेशन और डिटॉक्सिफिकेशन में अद्भुद लाभ देता है.
चंद्रप्रभा वटी एक आयुर्वेदिक फॉर्मूलेशन है जिसमें जड़ी-बूटियों और मिनरल्स का मिश्रण होता है. इसका उपयोग अक्सर यूरिनरी ट्रैक और रिप्रोडक्टिव हेल्थ को ठीक रखने के लिए किया जाता है. पीसीओएस में यह हार्मोन असंतुलन को ठीक करने में मदद करता है.
1. हमेशा गर्म, ताजा और ठीक से पका हुआ भोजन करें. गर्म फूड आइटाम्स पचाने में आसान होते हैं और वात दोष को संतुलित रखते हैं.
2. क्विनोआ, ब्राउन राइस और ओट्स जैसे होल व्हीट, ताज़ी सब्जियाँ और फलों से भरपूर भोजन करें.
3. घी, नारियल और जैतून का तेल जैसे हेल्दी फैट खाएँ.
4. लो फैट प्रोटीन सोर्स; जैसे - दाल, बीन्स, टोफू के ऑप्शन चुनें.
5. प्रोसेस्ड शुगर के बजाय सीमित मात्रा में शहद या गुड़ जैसे प्राकृतिक स्वीटनर्स को चुनें.
6. शांत वातावरण में अपनी भूख और इच्छा के अनुसार भोजन करें. माइंडफुल ईटिंग की प्रैक्टिस करें और अधिक खाने से बचें. नियमित समय पर भोजन करें और अनियमित खान-पान से बचें, क्योंकि ये डाइज़ेशन और हार्मोनल संतुलन को खराब करते हैं.
7. डाइज़ेशन और डिटॉक्सिफिकेशन में मदद के लिए दिन भर में कई बार गर्म पानी पियें.
8. अदरक, दालचीनी और मेथी से बनी हर्बल चाय का नियमित सेवन करें.
9. चूँकि पीसीओएस को कफ दोष इंबैलेंस से जोड़कर देखते हैं. इसलिए भारी और ऑइली भोजन, ज़्यादा मात्रा में डेयरी प्रोडक्ट्स और मीठे, खट्टे या नमकीन फूड आइटम्स को कम खाएँ.
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1. सुबह जल्दी उठें लगभग सूर्योदय के आसपास.
2. दिन की शुरुआत गर्म तेल से हल्की मालिश से करें.
3. मेटाबॉलिज्म को मज़बूत करने के लिए नियमित व्यायाम, योग या सैर पर जाएँ.
4. सूर्य नमस्कार जैसे योग आसन विशेष रूप से फ़ायदेमंद हो सकते हैं.
5. प्रत्येक रात पर्याप्त नींद लें. इसके लिए रात 10 बजे तक सोने और सुबह जल्दी उठने की कोशिश करें.
6. डाइज़ेशन को मज़बूत बनाने के लिए पूरे दिन नॉर्मल टेम्परेचर का पानी 2-3 लीटर तक पियें.
7. आप माइलो 100% नेचुरल PCOS और PCOD टी (100% Natural PCOS & PCOD Tea) को अपने रूटीन में शामिल कर सकते हैं और नेचुरल तरीक़े से पीसीओडी व पीसीओएस की समस्या को हल कर सकते हैं.
रूटीन में बदलाव के अलावा आप मायो-इनोसिटोल च्यूएबल टैबलेट्स (Myo-inositol Chewable Tablets) भी ट्राई कर सकते हैं जो फोलेट का रिच सोर्स हैं. रोज़, लंच के बाद इसकी सिर्फ़ एक गोली लेने से हॉर्मोनल इंबैलेंस, इरेगुलर पीरियड्स और वेट गेन जैसी समस्याओं में बेहद राहत मिलती है. इसके अलावा, आप माइलो पीसीओएस टी
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हमेशा याद रखें कि आयुर्वेद हर व्यक्ति की प्रकृति के अनुसार ट्रीटमेंट की दिशा तय करता है और इसलिए आयुर्वेद में जो एक व्यक्ति के लिए कारगर है वह दूसरे के लिए शायद उतना लाभकारी न हो. हमेशा एक अनुभवी डॉक्टर के परामर्श से अपने शरीर की प्रकृति के अनुरूप ट्रीटमेंट संबंधी सलाह लें.
1. Dayani Siriwardene SA, Karunathilaka LP, Kodituwakku ND, Karunarathne YA. (2010). Clinical efficacy of Ayurveda treatment regimen on Subfertility with Poly Cystic Ovarian Syndrome (PCOS).
2. Asmabi MA, Jithesh MK. (2022). Ayurveda management of infertility associated with Poly Cystic Ovarian Syndrome: A case report.
3. Lakshmi JN, Babu AN, Kiran SSM, Nori LP, et al. (2023). Herbs as a Source for the Treatment of Polycystic Ovarian Syndrome: A Systematic Review.
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