Illnesses & Infections
Written on 31 May 2022
यह एक ऐसी बीमारी है जो एक ऑर्थोपॉक्सवायरस के कारण पैदा होती है और इसके कारण चेचक तक हो सकता है. हालांकि यह बहुत गंभीर नहीं है और इन्सानों में इसका पहला केस साल 1970 में देखा गया था. इसका वायरस पहली बार 1958 में एक ऐसी लैब के बंदरों में पाया गया था जहां किसी रिसर्च के लिए बहुत सारे बंदरों, चूहों और गिलहरियों को रखा गया था. डब्ल्यू एच ओ ने इस वायरस के अजीब और असामान्य रूप से फैलने के बारे में सभी के लिए एक अलर्ट जारी किया है जिसमें यह चेतावनी दी गयी है कि दुनिया के कई सारे हिस्सों में मंकीपॉक्स के मामले बढ़ते हुए दिख रहे हैं और इसलिए सभी देश इस को लेकर अलर्ट मोड़ में रहें.
यह मुख्य रूप से सेंट्रल और वेस्ट अफ्रीका के ट्रोपिकल रेन फ़ौरेस्ट ऐरियाज़ से शुरू हुआ था लेकिन हाल ही में इसके लक्षण नाइजीरिया, कैमरून, कांगो रिपब्लिक, सिएरा लियोन, सेंट्रल अफ्रीकन रिपब्लिक, इज़राइल, सिंगापुर, यूनाइटेड किंगडम, संयुक्त राज्य अमेरिका, कोटे डी आइवर, गैबॉन, और कई अन्य देशों के लोगों में भी रिपोर्ट किए गए हैं. पूरे विश्व के स्तर पर इसके लगभग 100 कन्फर्म्ड केसेज डब्ल्यूएचओ (विश्व स्वास्थ्य संगठन) की जानकारी में हैं और ये सभी मामले इंटेरनैशनल ट्रैवल या जानवरों के इम्पोर्ट से जुड़े हैं.
इस बीमारी के लक्षण चेचक के लक्षणों से मिलते जुलते होते हैं लेकिन थोड़े हल्के होते हैं, जैसे:
बुखार
शरीर पर लाल चकत्ते
थकावट
सिरदर्द
शरीर पर घाव
खुजली
ठंड लगना
मांसपेशियों में दर्द होना
लेकिन चेचक और मंकीपॉक्स के बीच का अंतर यह है कि जब कोई व्यक्ति मंकीपॉक्स से पीड़ित होता है तो वह कई तरह ले कोंप्लीकेशंज़ के साथ-साथ सूजे हुए लिम्फ नोड्स जिसे लिम्फैडेनोपैथी कहा जाता है उससे भी पीड़ित होता है और यह सब लक्षण 2-4 हफ्ते तक बने रह सकते हैं.
अभी तक इस बीमारी का कोई निश्चित इलाज़ नहीं ढूंढा जा सका है लेकिन डॉक्टर्स केवल उन रोगियों को एंटीवायरल दवाएं दे रहे हैं जो इस बीमारी के कारण हाई रिस्क पर हों या इसके इन्फेक्शन को अन्य लोगों तक फैलाने का खतरा बन सकते हों.
यह किसी जानवर और इंसान के बीच एक दूसरे को छूने या बेहद नजदीक जाने के कारण आसानी से फैल सकता है. साथ ही यह स्किन पर खरोंच लगने, काटने, त्वचा के दानों या इनफ़ेकटेड बिस्तर और कपड़े और साथ ही पहले से इनफ़ेकटेड लोगों/जानवरों की साँसों और सलाइवा के माध्यम से भी फ़ेल सकता है.
जंगल क्षेत्र के आसपास रहने वाले लोग इस संक्रामक रोग के प्रति अधिक संवेदनशील हैं क्योंकि वह अक्सर जानवरों के संपर्क में आते रहते हैं. इसके साथ साथ किसी इनफ़ेकटेड जानवर का अधपका मांस खाना या उसकी त्वचा से बने प्रोडक्ट्स का उपयोग करना भी इस बीमारी को जन्म दे सकते हैं. किसी हेल्थ वर्कर को भी यह ट्रांसमिशन हो सकता है जब वह इस बीमारी से पीड़ित किसी मरीज की देखभाल कर रहा हो. इसके अलावा अगर कोई महिला गर्भवती है तो यह संक्रमण प्लेसेंटा के जरिए मां से गर्भस्थ शिशु तक भी पहुंच सकता है. हालांकि अभी तक इस बात के पक्के सबूत नहीं मिले हैं कि यह सेक्सुएल रिलेशञ्ज़ बनाने पर भी फैलता है या नहीं.
एक्सपर्ट्स के अनुसार, चिकनपौक्स का वैक्सीन लगभग 85% मंकीपॉक्स को रोकने में प्रभावी पाया गया है। कई रिसर्च से यह पाया गया है कि इस बीमारी के प्रकोप को कंट्रोल करने के लिए सिडोफोविर, वीआईजी (वैक्सीना इम्यून ग्लोब्युलिन), और एसटी -246 का भी उपयोग करना फायदेमंद रहेगा।
इसकी रोकथाम के लिए मिनिस्टरी औफ़ हेल्थ और ICMR (इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च) कम्यूनिटी अवेयरनेस के लिए कुछ गाइडलाइंस डेव्लप कर रहा है साथ ही मंकीपॉक्स प्रभावित देशों से लौटने वाले बीमार लोगों पर कड़ी निगरानी भी रखी जा रही है और उन्हें आइसोलेशन में रखने की सलाह दी गयी है.
हालांकि यह बीमारी अभी खतरनाक स्थिति में नहीं पहुंची है लेकिन वायरस के म्यूटेशन के खतरे ने पूरी दुनिया को डरा दिया है और इसी कारणवश कुछ देश ऐसे लोगों को वैक्सीन लगवाने की रेकेमेण्डेशन दे रहे हैं जो इस संक्रामक बीमारी के लिए हाइ रिस्क पर हौं जैसे कि हेल्थ वर्कर्स, लैबोरेटरी वर्कर्स या या फिर रेपिड रेस्पोंस टीम के सदस्य.
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