VIEW PRODUCTS
Article Continues below advertisement
Pregnancy
4 April 2023 को अपडेट किया गया
Article Continues below advertisement
मातृत्व की पहली सीढ़ी पर कदम रखते ही होने वाली माँ के स्वास्थ्य की जांच बेहद जरूरी हो जाती है क्योंकि उस के साथ उसके शिशु का स्वास्थ्य भी जुड़ा हुआ है. इसी कारण प्रेग्नेंसी के दौरान कई तरह के टेस्ट किए जाते हैं जिनमें से एक है यूरिन टेस्ट जो यूरिन में एपिथेलियल सेल्स को चैक करने के लिए करवाया जाता है. यूरिन में इनकी मात्रा अधिक होना कुछ बीमारियों का संकेत हो सकता है जैसे कि यूरिनरी ट्रैक्ट इन्फेक्शन, यीस्ट इन्फेक्शन, किडनी या लिवर प्रौब्लंस आदि. एपिथेलियल सेल्स इन यूरिन के बारे में इस पोस्ट में आपको देंगे पूरी जानकारी.
यूरिन में मुख्यतः 3 तरह के एपिथेलियल सेल्स पाये जाते हैं ट्रांसज़िशनल, स्क्वैमस और रीनल ट्यूबूलर जो किडनी, वैजाइना, पेलविस और रीनल ट्रैक जैसी अलग अलग अंगों में होते हैं. इन के बारे में हम विस्तार से आगे बताएँगे. इन की (एपिथेलियल सेल्स इन यूरिन नार्मल रेंज in hindi) नौर्मल रेंज प्रेग्नेंसी से पहले 1-5 के बीच और प्रेग्नेंसी स्टेबलिश होने के बाद 8-10 तक हो जाती है. किसी भी स्थिति में इनका 15 से ऊपर जाना एक अलार्मिंग साइन है जिसके लिए डॉक्टर्स टेस्ट द्वारा जांच करवाते हैं.
असल में एपिथेलियल सेल्स (epithelial cells in urine in hindi) चार मुख्य बौड़ी टिशूज में से एक हैं जो त्वचा, गले के अंदर की कोशिकाएं, आंत, हमारे ऑर्गन्स और ब्लड वेसल्स में पाये जाते हैं. यह सेल्स शरीर के अंदर और बाहरी त्वचा के बीच एक परत बनाते हैं जिससे वायरस से बचाव होता है. एपिथेलियल सेल्स एक दूसरे के उपर लेयर बनाते हुए आपस में जुड़े रहते हैं. फूड पाइप और आंतों में एपिथेलियल सेल्स भोजन को एब्ज़ौर्ब करने के साथ ही शरीर में एन्जाइम्स, हॉर्मोन्स और म्यूकस डिस्चार्ज में भी काम आते हैं.
यूरिन में ज्यादातर 3 प्रकार के एपिथेलियल सेल्स पाए जाते हैं (एपिथेलियल सेल्स इन यूरिन) जिनमें पहला है
Article continues below advertisment
ट्रांजिशनल सेल्स ऐसे टिश्यूज़ में बनते हैं जो यूरिनरी ट्रैक्ट और रीनल पेल्विस के बीच में कहीं भी हो सकते हैं. इन सेल्स में किसी भी ऑर्गन में लिक्विड की मात्रा को बदलने की क्षमता होती है.
इस तरह के एपिथेलियल सेल्स आकार में थोड़े लंबे होते हैं और वजायना और यूरिनरी ट्रैक्ट में होते हैं. स्क्वैमस एपिथेलियल सेल्स अधिकतर प्रेग्नेंसी के दौरान होने वाली माँ के यूरिन में पाये जाते हैं.
रीनल ट्यूबूलर एपिथेलियल सेल्स किडनी में पाये जाते हैं और अगर ये सेल्स बहुत ज्यादा मात्रा में बनने लगें तो इससे किडनी की बीमारी तक हो सकती है.
अब ये सवाल आता है कि एपिथेलियल सेल्स कितना होना चाहिए इन हिंदी. एपिथेलियल सेल्स की संख्या को चैक करने का पहला तरीका है यूरिन टेस्ट. इस टेस्ट में माइक्रोस्कोप की मदद से एचपीएफ (हाई पावर फील्ड) में सेल्स की मात्रा को जांचा जाता है और इसी के अनुरूप टेस्ट की रिपोर्ट में इनका स्तर कम, सामान्य या ज्यादा दिखता है. प्रेग्नेंसी और उससे पहले यूरिन में एपिथेलियल का लेवल एचपीएफ में 1 से 5 आता है.
लेकिन प्रेग्नेंसी में कई तरह के बदलाव होने के कारण यूरिन में एपिथेलियल सेल्स की मात्रा थोड़ी बढ़ जाती है जो 8 से 10 के बीच होना नौर्मल है. लेकिन एचपीएफ में रीनल ट्यूब्युलर एपिथेलियल सेल्स का लेवल 15 या इससे ज्यादा होने पर यह किडनी की समस्याओं की तरफ संकेत हो सकता है.
Article continues below advertisment
प्रेग्नेंसी के दौरान यूरिन में 15-20 या इससे ज्यादा रेंज में एपिथेलियल सेल्स का होना अलार्मिंग है. एपिथेलियल सेल्स इन यूरिन की सही जांच के लिए पैथोलोजिस्ट आपका पहला यूरिन टेस्ट करवाने के बाद खूब सारा पानी पीने के लिए बोलते हैं ताकि सैंपल में मौजूद गंदगी साफ हो जाए. इस के बाद दोबारा जांच में भी अगर एपिथेलियल सेल्स कुछ बढ़े हुए पाये जाते हैं तो वो इन कारणों की वजह से हो सकता है.
हमारे एक्सक्रेटरी सिस्टम के सभी अंगों में एपिथेलियल सेल्स होते हैं जो शरीर में ही छिपे रहकर काम करते हैं. लेकिन अगर इसका टेस्ट करवाने से पहले पानी कम पिया जाए तो इससे यूरिन कंसन्ट्रेटेड हो जाती है जिससे सेंपल में एपिथेलियल कुछ सेल्स ज्यादा दिखाई दे सकते हैं.
अगर यूरिन कलेक्ट करने का प्रोसीजर ठीक से फॉलो नहीं किया जाये या टेस्ट करवाने से पहले प्राइवेट पार्ट्स क्लीन न हौं तो भी यूरिन का सैंपल आसानी से खराब या कंटैमिनेटेड हो सकता है. ऐसे में एपिथेलियल सेल्स बढ़ सकते हैं जिसका असर सैंपल पर भी पड़ेगा. सैंपल कप को अंदर से छूने पर भी कंटैमिनेशन हो सकता है. इनमें से कोई भी संभावना होने पर नए कप में दोबारा से सैंपल लें.
यूरिनरी ट्रैक्ट इन्फेक्शन अक्सर यूरिनरी ट्रैक में शुरू होता है जहाँ से बैक्टीरिया ऊपर की तरफ ब्लैडर और किडनी में जा सकते हैं. जब ब्लैडर की लेयर में सूजन या संक्रमण होता है तो ब्लैडर से एपिथेलियल सेल्स निकल जाते हैं जिनकी जांच यूरिन में की जा सकती है. गंभीर यूटीआई होने पर यूरिन सैंपल में रीनल एपिथेलियल सेल्स मिलते हैं और फिर उसी के अनुसार ट्रीटमेंट किया जाता है.
रीनल ट्यूब में एपिथेलियल सेल्स होने का मतलब है कि आपको किडनी में गहरा इन्फेक्शन हुआ है या फिर किडनी से संबंधित कोई समस्या है. रीनल ट्यूब खून को फिल्टर करके यूरिन बनाती है और यदि यूरिन में यह सेल्स बहुत ज्यादा मात्रा में हौं तो यह नेफ्रोटिक सिंड्रोम का संकेत भी हो सकता है.
Article continues below advertisment
एपिथेलियल सेल्स इन यूरिन स्वास्थ्य से जुड़ा हुआ सवाल है और इसका ट्रीटमेंट इसकी बढ़ी हुई रेंज और टाइप के हिसाब से किया जाता है. यूटीआई बैक्टीरिया के कारण होने पर इसे एंटीबायोटिक्स से ट्रीट किया जाता है और वायरल यूटीआई के लिए एंटीवायरल दिये जाते हैं. किडनी डिजीज होने पर दवाइयों के साथ हाई ब्लड प्रेशर, कोलेस्ट्रॉल और ब्लड शुगर को कंट्रोल करना भी ज़रूरी है.
Yes
No
Written by
Kavita Uprety
Get baby's diet chart, and growth tips
प्रेग्नेंसी में खुबानी खाना: फायदे और साइड इफेक्ट्स
सामान्य पोस्टपार्टम डायट प्लान की मदद से अधिक वजन कम करने में कितना समय लगता है?
टेरिबल टू को संभालने के लिए पेरेंटिंग टिप्स
प्रेग्नेंसी के दौरान क्रैब: फायदे और नुकसान
मोलर गर्भावस्था
ग्रोइंग पेन्सः मतलब, कारण, लक्षण और इलाज
At Mylo, we help young parents raise happy and healthy families with our innovative new-age solutions:
baby carrier | baby soap | baby wipes | stretch marks cream | baby cream | baby shampoo | baby lotion | baby powder | baby body wash | stretch marks oil | baby massage oil | baby hair oil |