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    Noninvasive Prenatal Testing in Hindi | प्रेग्नेंसी में क्यों होता है NIPT टेस्ट?

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    Noninvasive Prenatal Testing in Hindi | प्रेग्नेंसी में क्यों होता है NIPT टेस्ट?

    12 August 2023 को अपडेट किया गया

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    नॉन-इनवेसिव प्रीनेटल टेस्ट (एनआईपीटी टेस्ट) को अक्सर नॉन-इनवेसिव प्रीनेटल स्क्रीनिंग (एनआईपीएस) भी कहा जाता है. यह भ्रूण के अनुवांशिक बीमारियों के साथ पैदा होने की संभावनाओं को देखने के लिए किया जाता है. इस टेस्ट में गर्भवती महिला के खून में मौजूद डीएनए के छोटे टुकड़ों का विश्लेषण किया जाता है. कोशिका के कणों में मौजूद ज्यादातर डीएनए के उलट, इन टुकड़ों को कोशिका मुक्त डीएनए (सीएफ डीएनए) कहा जाता है और यह स्वतंत्र तौर पर मौजूद होते हैं और कोशिकाओं के भीतर नहीं रहते हैं. यह छोटे टुकड़े सामान्य तौर पर डीएनए बिल्डिंग ब्लॉक्स (बेस पेयर) से कम होते हैं और कोशिकाओं के खत्म होकर डीएनए सहित अलग होकर, खून में आ जाने पर पैदा होते हैं.

    एनआईपी क्या होते हैं (What is NIPs?)

    गर्भवस्था में एनआईपी टेस्ट एक बहुत ही सटीक स्क्रीनिंग टेस्ट होता है. स्क्रीनिंग टेस्ट यह निर्धारित करने के लिए किया जाता है कि कहीं बच्चे में अनुवांशिक स्वास्थ्य समस्याएं होने की संभावना बहुत ज्यादा तो नहीं है. इन समस्याओं में डाउन सिंड्रोम और क्रोमोसोम से जुड़ीं दूसरी दिक्कतें शामिल हैं. गर्भवस्था में एनआईपी टेस्ट में खून की एक जांच होती है जिसे गर्भ के पहले तिमाही में किया जाता है. बच्चे के स्वास्थ्य की जांच के लिए कई तरह के टेस्ट होते हैं. यह मां के ऊपर निर्भर करता है कि वो कौन सा टेस्ट करवाएं. इसके लिए सबसे अच्छा तरीका होता है उपलब्ध विकल्पों पर अपनी गायनोकोलॉजिस्ट या जेनेटिक काउंसलर से सलाह लेना.

    गर्भवती होने पर मां के खून में उसकी कोशिकाओं और गर्भनाल की कोशिकाओं में संग्रहीत सीएफ-डीएनए का मिश्रण मौजूद होता है. गर्भनाल, गर्भाशय का एक ऊतक होता है जो भ्रूण को मां की रक्त आपूर्ति से जोड़ता है. गर्भावस्था के दौरान ये कोशिकाएं मां के खून में चली जाती हैं. गर्भनाल की कोशिकाओं का डीएनए और भ्रूण का डीएनए आमतौर पर एक जैसा ही होता है. गर्भनाल की कोशिकाओं के सीएफ-डीएनए का विश्लेषण से भ्रूण को नुकसान पहुंचाने वाली कुछ अनुवांशिक असामान्यताओं के डायग्नोस (रोग की पहचान) होता है.

    नॉन-इनवेसिव प्रीनेटल टेस्ट कब कराना चाहिए (When to Take the Non-Invasive Prenatal Testing?)

    गर्भावस्था के दौरान, मां के अंदर डीएनए का एक छोटा सा हिस्सा गर्भनाल या भ्रूण के डीएनए से बनता है. मानक एनआईपीटी टेस्ट से ऐसे गर्भ का पता लगा सकता है जिनमें भ्रूण के डीएनए की सामान्य मात्रा से उल्लेखनीय अंतर दिखाई देता है. यह बहुत महत्वपूर्ण होता है क्योंकि यह होने वाली मां को यह जानने का मौका देता है कि गर्भस्थ बच्चे में जन्म से जुड़ीं कुछ असामान्य सिकल सेल विकसित हो सकती हैं.

    हालांकि, एनआईपीटी टेस्ट कराने के लिए सही समय के बारे में व्यापक मतभेद मौजूद हैं. कुछ विशेषज्ञों का कहना है कि गर्भावस्था के 9-10 हफ्तों में इसे कराना चाहिए, जबकि कुछ इसे 13-14 हफ्तों में कराने की सलाह देते हैं. आमतौर पर, लैब के आधार पर, एनआईपीटी टेस्ट अक्सर गर्भावस्था के 10वें हफ्ते के बाद और 24 हफ्तों से पहले की जाती है.

    मां के खून में भ्रूण का लगभग 10% सेल-फ्री डीएनए (सीएफ-डीएनए) होता है. इसका विश्लेषण एनआईपीटी टेस्ट से किया जाता है. एनआईपीटी का रिजल्ट आने में आम तौर पर 2 हफ्तों या ज्यादा समय लग सकता है. यह टेस्ट गर्भवती महिला के हाथ से लिए गए एक ट्यूब खून से किया जाता है. इसके रिजल्ट से गर्भावस्था में क्रोमोसोम से जुड़ी बीमारियां होने के कम जोखिम या ज्यादा जोखिम होने का निर्धारण किया जा सकता है, जिनमें से होती हैं,

    • डाउन सिंड्रोम (तिमाही 21)
    • एडवर्ड सिंड्रोम (तिमाही 18)
    • पताऊ सिंड्रोम (तिमाही 13)
    • सिकल सेल (जिसमें सिकल सेल एनआईपीटी टेस्ट करवाते हैं)

    गर्भवस्था में एनआईपीटी टेस्ट कराने की जरूरत किसे होती है (Who Needs to Opt for NIPT Test Pregnancy?)

    एनआईपीटी काफी संवेदनशील टेस्ट होता है. एनआईपीएस टेस्ट डाउन सिंड्रोम के 99% से ज्यादा मामलों का पता लगा सकता है. लेकिन यह डायग्नोस्टिक टेस्ट के बजाय सिर्फ एक स्क्रीनिंग टेस्ट है.

    इससे बच्चे में अनुवांशिक स्थिति होने की बढ़ी हुई संभावना के बारे में पता चल सकता है. लेकिन इससे आमतौर पर एक निश्चित उत्तर नहीं मिलता. हालांकि, कई माता-पिता को स्क्रीनिंग टेस्ट से मिली जानकारी से यह तय करने में मदद मिल सकती है कि आगे डायग्नोस्टिक टेस्ट कराना है या नहीं.

    नीचे बताई गईं परिस्थितियां होने पर गर्भावस्था में एनआईपीटी टेस्ट कराना सही हो सकता है –

    • अगर पहली तिमाही के कंबाइंड स्क्रीनिंग टेस्ट से साबित होता हैं कि डाउन सिंड्रोम वाले बच्चे को जन्म देने की संभावना ज्यादा है; यह परीक्षण आमतौर पर, गर्भावस्था के 10 से 12 हफ्तों के बीच खून जांच के जरिए या अल्ट्रासाउंड के माध्यम से गर्भावस्था के 11 से 13 हफ्तों के बीच किया जाता है.
    • अगर किसी वजह से पहली तिमाही का कंबाइंड स्क्रीनिंग टेस्ट छूट गया हो.
    • यह आंकलन करने के लिए कि क्या भ्रूण स्वस्थ है और डाउन सिंड्रोम के साथ पैदा होने का जोखिम तो नहीं है.
    • सीवीएस (कोरियोनिक विलस सैंपलिंग) या एमनियोसेंटेसिस जैसे डायग्नोस्टिक टेस्ट के लिए जाने से पहले अनुवांशिक स्थितियों की जांच.
    • अगर किसी बड़े भाई-बहन या पति/साथी को पहले से ही डाउन सिंड्रोम है.

    एनआईपीएस टेस्ट महंगा हो सकता है लेकिन यह आमतौर पर हेल्थ इंश्योरेंस में शामिल होता है. भावी माता-पिता को नॉन-इनवेसिव प्रीनेटल टेस्ट पर सही सलाह लेने के लिए डॉक्टर से बातचीत करना चाहिए.


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    Written by

    Parul Sachdeva

    A globetrotter and a blogger by passion, Parul loves writing content. She has done M.Phil. in Journalism and Mass Communication and worked for more than 25 clients across Globe with a 100% job success rate. She has been associated with websites pertaining to parenting, travel, food, health & fitness and has also created SEO rich content for a variety of topics.

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