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    How to Take Care of a Newborn in Hindi | न्यूबोर्न बेबी की कैसे करें केयर?

    How to Take Care of a Newborn in Hindi | न्यूबोर्न बेबी की कैसे करें केयर?

    Updated on 10 August 2023

    ऐसी जाइंट फैमिलीज़ जहां दादी या नानी हों वहाँ छोटे बच्चों की देखभाल में बेहद मदद मिलती है. क्योंकि नवजात शिशु बड़े नाज़ुक होते हैं इसलिए जन्म के बाद उन्हें सही तरह से फीड कराने से लेकर, उनके कपडे और नैपी बदलने जैसी सभी बातों का ध्यान रखना ज़रूरी है. ऐसे में बुजुर्गों के अनुभव और घरेलू नुस्खों से नयी माँ को भी नवजात शिशु की देखभाल (navjat shishu ki dekhbhal) के सही तरीके की ट्रेनिंग मिलती रहती है. साथ ही परिवार के सभी सदस्य मिल जुलकर जब बच्चे परवरिश करते हैं तो ऐसे माहौल में बच्चे का विकास भी ज्यादा स्वस्थ तरीके से होता है.

    इस पोस्ट में हम आपके साथ शेयर करेंगे नवजात शिशु की देखभाल से जुड़े हुए कुछ ऐसे ही टिप्स और सावधानियाँ (navjaat shishu ki dekh bhal kaise karen)

    कठोर खेल ना करें -नवजात शिशु की देखभाल के लिए ज़रूरी बातों में से पहली यह है कि इतना छोटा बच्चा किसी भी तरह की रफ हैंडिलिंग को सहन नहीं कर पाता न ही ये उसकी सुरक्षा के लिए उचित है. इसलिए कभी भी शिशु को घुटने के बल बैठाने या हवा में उछालने जैसे खेल न करें.

    सुरक्षित रूप से जकड़ना -बच्चे को पकड़ते हुए उसकी बौडी को अपने दोनों हाथों में मजबूती से पकड़ें. गोद में पकड़े हुए बच्चे को ज़ोर-ज़ोर से हिलाने या झुलाने से भी बचें इससे बच्चे के सर में क्लौटिंग का खतरा हो सकता है. हमेशा याद रखें कि बच्चे को सिर्फ हाथ पकड़ कर उठाने की कोशिश नहीं करनी चाहिए बल्कि उसके पूरे शरीर को दोनों हाथों की मदद से ग्रिप बनाते हुए होल्ड करना चाहिए.

    सहारा प्रदान करना -छोटा बच्चा बेहद कोमल होता है और उसे गोद में सावधानी से उठाना चाहिए. हमेशा याद रखें कि उसके सिर को भी हाथ से सहारा दें क्योंकि इस उम्र में बच्चे की गर्दन मजबूत नहीं होती है. ऐसा न करने पर उसकी गर्दन में मोच या लचक आ सकती है. शिशु को उठाते हुए एक हाथ को गर्दन और सिर के नीचे लगाएँ और दूसरा हाथ कूल्हों के नीचे रखते हुए सहारा देते हुए सँभाल कर उठाएँ.

    हाथ धोना -छोटे बच्चे को छूने से पहले अपने हाथ ज़रूर धोएँ या सैनिटाइज़र का प्रयोग करें. बच्चे का इमम्यून सिस्टम कमजोर होने के कारण इन्फेक्शन की भी संभावना रहती है. इसके अलावा, परिवार के अन्य सदस्य या मेड इत्यादि के लिए भी इस नियम को फ़ौलो करें.

    शिशु को ज़ोर से हिलाएं नहीं कई बार बच्चे के साथ खेलते हुए माता पिता उसे ज़ोर ज़ोर से हिलाते या झुलाते हैं. ऐसा करने से बच्चे के ब्रेन में ब्लीडिंग हो सकती है या अन्य गंभीर नुकसान भी हो सकता है. याद रखें कि जब भी बच्चे को नींद से जगाना हो तो उस के लिए उसके पैरों को हल्के से गुदगुदी करें जिससे शिशु जाग जाएगा.

    शिशु के लिए डायपर

    बच्चे के लिए कपडे या डिस्पोजेबल डायपर का इस्तेमाल आप अपनी सुविधा के अनुसार कर सकते हैं. शुरुवात में पूरे दिन के दौरान आपको 8 से 10 डायपर बदलने की ज़रूरत पड़ेगी क्योंकि इतना छोटा बच्चा केवल दूध पीता है और इसलिए कई बार सुसू करता है.

    बच्चे की क्लीनिंग और डायपर चेंज के लिए आप को इन वस्तुओं की ज़रूरत पड़ेगी.

    • गुनगुना पानी

    • त्वचा को सुखाने के लिए साफ़ कपडा

    • रुई और डायपर क्रीम

    बच्चे के डायपर को बीच बीच में चैक करते रहें और गन्दा होने पर हटा दें. उसके बाद बच्चे को पेट के बल लिटा कर गुनगुने पानी में भीगी हुई रुई से उसके कमर से नीचे के हिस्से को सावधानी से साफ़ करें और फिर सूखे कपडे से अच्छे से पोंछ के सुखा दें. अब डायपर क्रीम लगा कर नया डायपर पहनायें. डिस्पोज़ेबल डायपर पहनाने पर कई बार स्किन लाल हो जाती है और ऐसे में डायपर क्रीम के इस्तेमाल से इस समस्या से बचा जा सकता है. साथ ही आप एंटीबैक्टीरियल पाउडर का भी प्रयोग कर सकती हैं.

    स्तनपान

    नवजात शिशु की देखभाल में ब्रेस्टफीडिंग एक बेहद ज़रूरी कार्य है और जन्म के तुरंत बाद से ही बच्चे को माँ के दूध की जरुरत होती है. लेकिन नवजात शिशु को माँ के स्तन से ठीक से दूध पीना नहीं आता और उसे यह सिखाना पड़ता है. माँ की मदद से बच्चा धीरे धीरे दूध पीना सीख जाता है.

    डिलीवरी के तुरंत बाद स्तन से निकलने वाला पहला गाढ़ा और पीला दूध जिसे कोलेस्ट्रम कहते हैं वह बच्चे के लिए बहुत ज़रूरी है. यह रोग प्रतिरोधक शक्ति को असरदार तरीके से बढ़ा देता है जिससे बच्चा स्वस्थ रहता है. स्तनपान कराते हुए इन बातों का खास ख्याल रखें.

    • ब्रेस्ट फीड कराते हुए बच्चे को बारी बारी से दोनों स्तनों से दूध पिलायें.

    • दूध पीने के दौरान शिशु को साँस लेने में दिक्कत ना हो इसका ध्यान रखें.

    • जब बच्चा दूध पीना शुरू करे तो ब्रेस्ट को अंगुली से हल्का सा दबा दें ताकि बच्चे के साँस लेने लायक जगह बन जाए.

    • अगर ब्रेस्ट में जरुरत से ज्यादा दूध भर जाए तो एक्स्ट्रा दूध निकाल दें वरना इस वजह से ब्रेस्ट पेन या इन्फेक्शन की दिक्कत हो सकती है.

    • शुरुवात में बच्चे को आसानी से ब्रेस्टफीड कराने के लिए उसे अपने पेट के ऊपर एक हाथ के सहारे से लिटा लें. उसके शरीर को एक सीध में रखते हुए अब उसके सिर को अपने दूसरे हाथ से सँभालते हुए दूध पिलायें.

    शिशु को नहलाना

    जन्म के बाद बच्चे को पहली बार तब नहलाएँ जब उसकी अम्ब्लिकल कार्ड गिर जाए और नाभि ठीक से सूख जाये. ऐसा लगभग 1 से 4 हफ्ते के बीच में होता है. बच्चे के पहले साल में उसे हफ्ते में 2-3 बार नहलाना काफी होता है लेकिन गर्म क्लाइमेट वाली जगहों में 4 से 5 बार भी नहलाया जा सकता है. बच्चे को नहलाने के लिए इन बातों का ध्यान रखें

    • नहलाने के लिए किसी सौम्य बेबी सोप या शैंपू का उपयोग करें.

    • नहलाने के बाद बच्चे को किसी सॉफ्ट तौलिये से पोछें और बेबी औइल से हल्के हाथ से मालिश करें.

    • बच्चे को नहलाते समय इस बात का ध्यान दें उनके आँखों और कानों में पानी ना घुसे.

    • ऐसा होने पर किसी सॉफ्ट कपड़े या रुई से आँखों के पानी को पोछें.

    • थोड़ा बड़ा होने पर जब बच्चा बैठने लगे तब आप बच्चे को टब में भी नहला सकती हैं. उसके लिए टब में 2-3 इंच तक गुन-गुना पानी भर लें और फिर उसमें बेबी को बैठा कर नहलाएं. नहलाने के दौरान बच्चे को कभी भी अकेला ना छोडें.

    नवजात शिशु की मालिश करना

    अगर हो सके तो बच्चे की मालिश करना सीख लें और खुद ही करने का प्रयास करें इससे बच्चे और आप के बीच का बौंड़ गहरा होगा. वैसे आप इसके लिए किसी दाई की मदद भी ले सकती हैं. हर दिन कुछ मिनट्स तक बेहद हल्के हाथों से बच्चे की मालिश करनी चाहिए जिसके लिए नारियल, जैतून या सरसों के तेल का प्रयोग करें. बच्चे के नाखून बड़े होने पर सावधानी से उन्हें काटते रहें. कई बार बच्चे नाखूनों से खुद को ही खरोंचे लगा लेते हैं.

    शिशु को सुलाना

    नवजात शिशु की देखभाल का एक और पहलू है उसको सुलाना. पैदा होने बाद कुछ दिन तक बच्चे लगभग 18 घंटे तक सोते हैं. इस बीच में वो बार बार जगते हैं क्योंकि उन्हें भूख लगती है या फिर सुसू होने पर गीलेपन से उनकी नींद टूट जाती है. बच्चे को लगभग हर दो घंटे में भूख लगती है क्योंकि उनका पेट बहुत छोटा है.

    कभी कभी बच्चा माँ की गोद में भी आना चाहता है क्योंकि इससे उसे कम्फर्ट मिलता है. नींद के दौरान बच्चा कभी कभी मुस्कराता है तो कभी चौंक कर रोने लगता है. नींद में अचानक रोने पर बच्चे को प्यार से थपथपाँयें.

    4 से 5 महीने तक के बच्चे के रूटीन में सोना, नैपी गंदी करना और दूध पीना ये ही काम होते हैं. बच्चा अधिकतर सोया रहता है इसलिए उसे बहुत ही नर्म, हवादार, और आसानी से बदले जाने वाले कपड़े पहनाएँ जो सर्दी या गर्मी के मौसम के अनुकूल हौं. साथ ही मच्छरों से बचाने के लिए नेट का प्रबंध भी कर लें.

    शिशु के नाखून काटना

    बच्चे के नाखून ट्रिम करते रहना बहुत ज़रूरी है. इसके लिए बाज़ार में बेबी नेल क्लिपर भी आते हैं जिससे बिना बच्चे को चोट पहुंचाए आप आसानी से उसके नाखून ट्रिम कर सकती हैं. कैंची जैसी तेज़ धारदार वस्तु का प्रयोग ना करें और नेलकटर का प्रयोग करते हुए भी बेहद सावधानी बरतें.

    एक नवजात शिशु की देखभाल की परिभाषा समय, मौसम, जगह के अनुरूप थोड़ी बहुत अलग हो सकती है. लेकिन बच्चे की देखभाल करते हुए कुछ भी असामान्य दिखने पर अपने डॉक्टर से तुरंत संपर्क करना चाहिए.

    सोर्स

    Perez BP, Mendez MD.(2022) Routine Newborn Care.

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    Written by

    Kavita Uprety

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