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Caring for your Newborn
12 December 2022 को अपडेट किया गया
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हम सब जानते हैं कि बड़ों की तरह बच्चों को भी एक निश्चित मात्रा में विटामिन डी की आवश्यकता होती है. इसीलिए भारतीय परंपरा में शिशु को जन्म के कुछ दिन बाद से ही थोड़ी देर के लिए धूप दिखाने की रीति रही है. जाइंट परिवारों में घर के बड़े या फिर दादी या नानी शिशु की मालिश के वक़्त ही उन्हें धूप में लिटाती थीं ताकि बच्चे को विटामिन डी की कमी होने से बचाया जा सके.
आज के समय में बच्चों में विटामिन डी की कमी एक बड़ी समस्या बन के उभर रही है क्योंकि पिछले कुछ वर्षों में न केवल बड़े बल्कि बच्चों की लाइफस्टाइल में काफी बदलाव आया है. आजकल बच्चे अधिकतर बंद कमरों या छोटे फ्लेट्स में ही बंद रहते हैं. वर्किंग माता पिता के बच्चे तो कई बार पूरा दिन डे केयर में बिताते हैं और कई बार भोजन के द्वारा मिलने वाला पोषण भी सही तरह से नहीं मिल पाता. इन्हीं सब कारणों की वजह से आजकल शिशुओं में विटामिन डी की कमी की समस्या ज्यादा देखने को मिलती है.
शरीर और हड्डियों के विकास के लिए विटामिन डी बेहद आवश्यक है और इसकी कमी होने से शरीर में हड्डियों से जुड़े कई तरह के रोग और विकृतियाँ पनप सकती हैं. डॉक्टर्स 12 महीने तक के बच्चे के लिए हर रोज़ कम से कम 5 माइक्रोग्राम विटामिन डी रेकमेंड करते हैं. विटामिन डी शरीर में पाये जाने वाले हाइड्रक्सी कोलेस्ट्रॉल और अल्ट्रावायलेट किरणों की मदद से बनता है. शरीर में विटामिन-डी का मुख्य काम कैल्शियम बनाना है और फिर ये आंतों से कैल्शियम को अब्सॉर्ब कर हड्डियों में पहुंचाता है.
बच्चे के जन्म के कुछ महीने के अंदर उसके सिर की कोमल हड्डियाँ आपस में जुड़ कर सख्त होने लगती हैं. विटामिन डी की कमी होने पर इस प्रक्रिया में रुकावट आती है और यह समय से नहीं हो पाती.
विटामिन डी से हड्डियां और दांत का मज़बूत होते है.
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यह बच्चों में रिकेट्स रोग को पनपने से रोकने के लिए भी बहुत ज़रूरी है.
बच्चे के पैरों में मजबूती और हड्डियों में किसी भी तरह की विकृति को रोकने के लिए भी विटामिन डी का बेहद महत्वपूर्ण रोल है.
इसकी कमी से बच्चे की मांसपेशियों में भी कमजोरी आने लगती है और बच्चा अपनी उम्र के अनुसार नॉर्मल ग्रोथ नहीं कर पाता.
ज़रूरत के मुताबिक विटामिन डी की पूर्ति होने पर बच्चे का इमम्यून सिस्टम मज़बूत बना रहता है और हड्डियों में दर्द की समस्या नहीं होती.
यह शरीर में कैल्शियम और फॉस्फेट के स्तर में संतुलन बनाए रखने में मदद करता है
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साथ ही विटामिन डी बच्चे में एनीमिया और बार-बार निमोनिया होने के खतरे को भी कम करता है.
इसके पर्याप्त मात्रा में सेवन से ऑस्टियोआर्थराइटिस जैसी समस्या को रोका जा सकता है.
इस तरह शिशु के सम्पूर्ण विकास में विटामिन डी एक महत्तवपूर्ण भूमिका निभाता है
शिशु को रोज़ाना आधे घंटे तक धूप में अवश्य लिटाएं. लेकिन इस बात का ध्यान रखें कि यह काम आप सुबह की हल्की धूप में करें जब सूर्य की गर्मी में तेज़ी नहीं होती.
शिशु के चेहरे और आँखों पर सीधी धूप न लगने दें केवल शरीर को धूप दिखाएँ.
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डॉक्टरों के अनुसार ऐसा करने से बच्चे को पीलिया होने का खतरा भी कम हो जाता है.
सर्दियों में शिशु को सुबह की धूप दिखाने से उसके शरीर को गर्माहट भी मिलेगी और ठंड से भी बचाव होगा.
सुबह की ताज़ी धूप शिशु को संक्रमण से बचाने में काफी मददगार होती है.
बात का खास ख्याल रखें की धूप तेज़ न हो जिससे बच्चे की कोमल त्वचा झुलस सकती है. सुबह की हल्की गुनगुनी धूप बच्चे के लिए सबसे अच्छी है जिसमें बच्चे की त्वचा के झुलसने या सनबर्न होने का खतरा नहीं रहता.
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Written by
Jyoti Prajapati
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