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    Low AMH Treatment in Hindi| आख़िर क्या होता है लो एएमएच और कैसे होता है इसका गर्भधारण पर असर?

    Symptoms & Illnesses

    Low AMH Treatment in Hindi| आख़िर क्या होता है लो एएमएच और कैसे होता है इसका गर्भधारण पर असर?

    29 September 2023 को अपडेट किया गया

    Medically Reviewed by

    Dr. Shruti Tanwar

    C-section & gynae problems - MBBS| MS (OBS & Gynae)

    View Profile

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    लो एएमएच (low amh levels) लेवल का मतलब है ‘लो एंटी-मुलरियन हार्मोन (Anti-Müllerian Hormone -AMH)’. यह एक प्रोटीन हार्मोन होता है जो ओवरी में फॉलिकल सेल्स द्वारा बनाया जाता है. फॉलिकल सेल्स वो संरचनाएँ हैं जहाँ महिला की ओवरी में एग्स डेवलप होते हैं. ब्लड में एएमएच का लेवल चेक करके एक महिला के ओवेरियन रिजर्व (ovarian reserve) के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी मिल सकती है जिसका मतलब है उसके ओवरीज़ में बचे हुए अंडों की संख्या और क्वालिटी यानी कि उसकी गर्भधारण करने की क्षमता का पता लगाना. एएमएच का लेवल कम होना इस बात का संकेत है कि एक महिला का ओवेरियन रिजर्व कम हो गया है जो उसकी फर्टिलिटी के लिए खतरा हो सकता है. कुछ लक्षणों से इसे पहचाना जा सकता है.

    लो एएमएच के लक्षण (Symptoms of Low AMH in Hindi)

    लो एएमएच के खुद के कोई लक्षण नहीं होते हैं लेकिन इसके लेवल को ब्लड टेस्ट से चेक किया जा सकता है. हालाँकि लो एमएच होने पर कुछ अन्य सिम्टम्स (symptoms of low amh) से पहचाना भी जा सकता है; जैसे-

    1. प्रेग्नेंसी में दिक्कत (Difficulty getting pregnant)

    लो एएमएच लेवल होने का पहला खतरा है फर्टिलिटी में कमी आना. लो एमएच वाली महिलाओं को नेचुरल तरीके से गर्भधारण में कठिनाई हो सकती है.

    2. अनियमित पीरियड्स (Irregular menstrual cycles)

    लो एएमएच वाली कुछ महिलाओं को इरेगुलर या मिस पीरियड होते हैं जिसका कारण है हार्मोनल असंतुलन.

    3. प्रीमैच्योर ओवेरियन इंसफिशिएंसी (Premature ovarian insufficiency - POI)

    कुछ मामलों में, लो एएमएच का संबंध पीओआई से भी हो सकता है, जिसे प्रीमैच्योरर मेनोपोज़ (premature menopause) भी कहा जाता है. इसके लक्षणों में हॉट फ्लेशेस, रात को पसीना आना, ड्राई वेजाइना और मूड स्विंग्स होते हैं.

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    इसे भी पढ़ें : मेनोपॉज क्या होता है और महिलाओं की सेहत से क्या होता है इसका कनेक्शन?

    4. पॉलीसिस्टिक ओवरी सिंड्रोम (Polycystic ovary syndrome - PCOS)

    पीसीओएस से पीड़ित महिलाओं में भी कभी-कभी लो एमएच देखा जाता है. इसके कारण अनियमित मासिक धर्म, मुँहासे, चेहरे और शरीर पर अतिरिक्त बाल और वज़न बढ़ना जैसे लक्षण उभरने लगते हैं.

    इसे भी पढ़ें : पीसीओएस होने पर कैसे रखें ख़ुद का ख़्याल?

    लो एएमएच लेवल क्या होता है? (What are Low AMH Levels in Hindi)

    एएमएच लेवल आमतौर पर नैनोग्राम प्रति मिलीलीटर (ng/mL) या पिकोमोल्स (picomoles) प्रति लीटर (pmol/L) में मापा जाता है. कुछ कटऑफ वैल्यू से नीचे के एएमएच लेवल को "लो" का संकेत मानते हैं जो इस प्रकार है:

    • नॉर्मल या हाइ एएमएच - 1.0 से 1.5 एनजी/एमएल (या 7 से 10 pmol / L) से ऊपर
    • लो एएमएच - 0.1 से 1.0 एनजी / एमएल (या 0.7 से 7 pmol / L) के बीच
    • बिलो लो एएमएच: 0.1 एनजी / एमएल से नीचे (या 0.7 पीएमओएल / एल)

    लो एएमएच के कारण (Reasons for low AMH in Hindi)

    लो एएमएच के लिए कई स्थितियाँ (reasons for low amh) कारण बन सकती हैं जैसे कि-

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    1. बड़ी उम्र एएमएच स्तर को प्रभावित करने वाले मुख्य कारणों में से एक है. जैसे-जैसे एक महिला की उम्र बढ़ती है, उसका ओवेरियन रिजर्व प्राकृतिक रूप से कम हो जाता है, जिससे एएमएच का स्तर भी घटने लगता है.
    2. प्रीमैच्योर ओवेरियन इंसफिशिएंसी यानी कि समय से पहले मेनोपोज़ होने पर भी महिला की ओवरी 40 वर्ष की आयु से पहले काम करना बंद कर देती हैं. जिससे एएमएच का लेवल लो हो सकता है और फर्टिलिटी में गिरावट आ सकती है.
    3. पीसीओएस यानी कि पॉलीसिस्टिक ओवरी सिंड्रोम से पीड़ित महिलाओं में होने वाले हार्मोनल असंतुलन के कारण भी लो एएमएच हो सकता है.
    4. ओवरी की किसी भी तरह की सर्जरी जैसे, ओवेरियन सिस्ट रिमूवल (ovarian cyst removal) या एंडोमेट्रियोसिस (endometriosis) के लिए की गयी सर्जरी से भी ओवेरियन फॉलिकल में कमी और लो एएमएच की समस्या हो सकती है.
    5. कुछ कैंसर ट्रीटमेंट, जैसे कि कीमोथेरेपी और रेडिएशन थेरेपी से भी ओवरी को नुकसान पहुंचता है और इससे ओवेरियन रिजर्व पर नकारात्मक असर पड़ता है.
    6. कुछ महिलाओं में जेनेटिक कारणों की वजह से भी एएमएच का लेवल कम हो सकता है.
    7. ऑटोइम्यून कंडीशन भी ओवेरियन रिजर्व को प्रभावित करती हैं और परिणामस्वरूप, एएमएच स्तर घट सकता है.
    8. सिगरेट शराब का सेवन और ख़राब लाइफस्टाइल भी ओवेरियन रिजर्व और एएमएच लेवल को कम करने के पीछे एक बड़ा कारण होती है.

    लो एएमएच लेवल का गर्भधारण पर असर (How can Low AMH levels affect chances of conception in Hindi)

    एएमएच लेवल के घट जाने का सीधा असर महिला की फर्टिलिटी पर पड़ता है और इससे उसके प्रेग्नेंट होने की पॉसिबिलिटी कम हो सकती हैं. एमएच ओवेरियन रिजर्व का एक महत्वपूर्ण मार्क है और एक महिला में घटते हुए एग्स की संख्या और क्वालिटी का संकेत देता है. लो एएमएच वाली महिलाओं में फर्टिलिटी में कमी या इंफर्टिलिटी और गर्भधारण करने में नॉर्मल से अधिक समय लगता है. इसके अलावा स्वाभाविक रूप से गर्भधारण करने में दिक्कत आने जैसी परेशानियाँ होने लगती हैं. अंडों की संख्या के सीमित हो जाने के कारण आईवीएफ जैसी टेक्निक की मदद से प्रेग्नेंट होने की संभावना भी घट सकती है.

    इसे भी पढ़ें: गर्भधारण में परेशानी? ये फर्टिलिटी टेस्ट कर सकते हैं आपकी मदद!

    लो एएमएच होने पर भी पीरियड्स नियमित हो सकते हैं? (Can you have low AMH but regular periods in Hindi)

    जी हाँ. असल में रेगुलर पीरियड्स कई तरह के हार्मोनल फ़ैक्टर्स से जुड़े होते हैं और लो एमएच होने पर भी आपके पीरियड्स (low amh but regular periods) रेगुलर बने रह सकते हैं.

    लो एएमएच स्तर को कैसे डायग्नोसिस किया जाता है? (How are Low AMH Levels Diagnosed in Hindi)

    लो एएमएच लेवल के डायग्नोसिस के कई तरीके हो सकते हैं; जैसे-

    1. रोगी की मेडिकल हिस्ट्री जिसमें मेंस्ट्रुएशन हिस्ट्री पिछली प्रेग्नेंसी और किसी भी अन्य फर्टिलिटी प्रॉब्लम के बारे में पूछा जाता है.
    2. ओवरऑल फिटनेस और हार्मोनल इंबैलेंस का पता लगाने के लिए फिज़िकल एग्जामिनेशन.
    3. एंटी-मुलरियन हार्मोन (एएमएच) के लेवल को चेक करने के लिए ब्लड सेंपल.
    4. एएमएच टेस्ट रिजल्ट से चेक करना कि क्या लेवल नॉर्मल, कम या फिर बहुत कम है.
    5. अधिक उम्र की महिलाओं में एएमएच का उम्र के कारण कम हो जाने का पता लगाना.
    6. फॉलिकल स्टिम्युलेटिंग हॉरमोन (follicle-stimulating hormone (FSH) और एस्ट्राडियोल (estradiol) टेस्ट के द्वारा ओवरी के फंक्शन को चेक करना.

    इसे भी पढ़ें: डॉक्टर फॉलिक्युलर स्‍टडी की सलाह कब और क्यों देते हैं?

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    लो एएमएच ट्रीटमेंट (Low AMH treatment in Hindi)

    लो ओवेरियन रिजर्व का ट्रीटमेंट (low amh treatment) लाइफस्टाइल करेक्शन और दवाओं से लेकर आई वी एफ और सर्जरी तक कई तरह से किया जाता है.

    1. क्लोमीफीन साइट्रेट या लेट्रोज़ोल जैसी दवाओं से ओवरी को स्टिम्युलेट करके ओव्यूलेशन की संभावना को बढ़ाया जाता है.

    1. आईयूआई जिसमें स्पर्म को ओव्यूलेशन के दौरान सीधे यूटरस में डाला जाता है जिसे प्रेग्नेंसी हो सके.

    1. आईवीएफ के द्वारा प्रेग्नेंसी प्लान करना और महिला की ओवरी में एग्स की बेहद कमी होने पर डोनर एग आईवीएफ के ऑप्शन का प्रयोग करना.

    1. एग्स की क्वालिटी को बढ़ाने के लिए कोएंजाइम Q10 या DHEA जैसे सप्लीमेंट्स का प्रयोग.

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    1. लाइफस्टाइल में बदलाव जिसमें नियमित व्यायाम, हेल्दी फूड हेबिट्स और नशे को छोड़ने से फर्टिलिटी बूस्ट करने का प्रयास करना.

    1. एंडोमेट्रियोसिस या ओवेरियन सिस्ट होने पर सर्जरी द्वारा समाधान.

    प्रो टिप (Pro Tip)

    लो ओवेरियन रिजर्व एक अलार्मिंग सिचुएशन है और प्रेग्नेंसी के लिए एक पोटेंशियल थ्रेट माना जाता है लेकिन ये अकेला ऐसा फैक्टर नहीं हैं जो एक महिला की गर्भधारण करने की क्षमता को ख़त्म कर सके. याद रखें कि जहाँ लो एएमएच से जूझ रही कई महिलाएं स्वाभाविक रूप से गर्भधारण करती हैं वहीं कई और फर्टिलिटी ट्रीटमेंट के द्वारा सामान्य रूप से माँ बनती हैं.

    रेफरेंस

    Shrikhande L, Shrikhande B, Shrikhande A. (2020). AMH and Its Clinical Implications. J Obstet Gynaecol India.

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