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Breastfeeding & Lactation
13 August 2023 को अपडेट किया गया
साधारण शब्दों में कहें तो लैक्टेशन फेलियर मतलब ब्रेस्टफ़ीडिंग में परेशानी होना या माँ के स्तनों में दूध कम आना. ऐसा होने पर बच्चे का पेट पूरी तरह से नहीं भर पाता और उसके लिए पोषण की कमी का खतरा भी रहता है. आइये इस बारे में डिटेल में जानते हैं!
लैक्टेशन फेलियर में बच्चे की भूख के अनुरूप दूध का प्रोडक्शन नहीं हो पाता है. हार्मोनल असंतुलन, ब्रेस्ट का ठीक से स्टिम्युलेट न हो पाना और साथ ही ग़लत फ़ीडिंग टेक्निक भी इस समस्या का कारण हो सकती है. कारण चाहे जो भी हो इस स्थिति में बच्चे के लिए पोषण का अभाव और पेट ना भरने जैसी समस्या खड़ी हो जाती है. तो आइये लैक्टेशन फेलियर के कुछ कॉमन कारणों के बारे में जान लेते हैं.
लैक्टेशन फेलियर के सबसे आम कारण कुछ इस प्रकार हैं;
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ऐसा तब होता है जब मिल्क प्रोडक्शन और इजेक्शन से जुड़े हार्मोन्स का आपसी संतुलन गड़बड़ा जाता है. पॉलीसिस्टिक ओवरी सिंड्रोम (PCOS), हाइपोथायरायडिज्म (hypothyroidism), या हाइपरप्रोलैक्टिनीमिया (hyperprolactinemia) जैसी हार्मोनल स्थितियां प्रोलैक्टिन के लेवल को कम कर सकती हैं जिससे दूध की आपूर्ति कम होने लगती है.
स्तन ग्रंथियाँ बराबर दूध बनाती रहें उसके लिए स्तनों को लगातार खाली किया जाना ज़रूरी है जिसे उन्हें स्टिम्युलेशन मिलता है. खाली होते ही शरीर को और अधिक दूध के प्रोडक्शन का संकेत मिलता है लेकिन अगर ब्रेस्ट खाली नहीं होते हैं तो मिल्क प्रोडक्शन में कमी आने लगती है.
डायबिटीज, हाई बीपी की दवाएँ और ब्रेस्ट सर्जरी जैसी स्थितियाँ ब्रेस्टमिल्क के प्रोडक्शन के लिए ज़रूरी हार्मोनल और फिजियोलॉजिकल प्रोसेस को डिस्टर्ब कर सकती है. इनके कारण हार्मोन रेगुलेशन, ब्रेस्ट टिशू डेव्लप्मेंट और मिल्क प्रोडक्शन पाथवे डिस्टर्ब होने लगता है और दूध में कमी आ जाती है.
माँ को होने वाला इमोशनल स्ट्रेस और शारीरिक थकान भी उसकी ब्रेस्टमिल्क बनाने की क्षमता को कम कर सकता है. कोर्टिसोल जैसे स्ट्रेस हार्मोन, मिल्क सिंथेसिस के लिए ज़रूरी प्रोलेक्टिऑन हार्मोन को गड़बड़ा सकते हैं जिसे लेट-डाउन रिफ्लेक्स (let-down reflex ) और ब्रेस्टफ़ीडिंग में परेशानी होना जैसी दिक्कतें होने लगती हैं.
इंसफिशिएंट ग्लेंड्यूलर टिशु एक ऐसी स्थिति है जिसमें एक महिला के स्तनों में दूध उत्पादन करने वाले टिशू की कमी होती है जिससे पर्याप्त दूध का प्रोडक्शन नहीं हो पाता है. इस स्थिति को कभी-कभी ‘हाइपोप्लास्टिक ब्रेस्ट’ (hypoplastic breasts) भी कहा जाता है.
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जब बच्चे को ब्रेस्टमिल्क के अलावा बार-बार फार्मूला मिल्क दिया जाता है तो इससे भी ब्रेस्टमिल्क की खपत कम हो जाती है जिससे समय के साथ मिल्क प्रोडक्शन में कमी आ सकती है.
ब्रेस्ट या निप्पल से जुड़ी समस्याएँ जैसे ख़राब लैचिंग, कटे-फटे दर्दभरे निपल्स, मास्टिटिस (mastitis), या मिल्क डक्ट्स के ब्लॉकेज से जो दर्द और असुविधा होती है उससे भी माँ ठीक से दूध नहीं पिला पाती. ऐसे में दूध निकलना कम हो जाता है और इस कारण मिल्क प्रोडक्शन भी घटने लगता है.
इसे भी पढ़ें: Nipple Shield Breastfeeding in Hindi | क्या ब्रेस्टफ़ीडिंग को आसान बना सकता है निप्पल शील्ड?
आहार में पोषण की कमी और डिहाइड्रेशन के कारण भी ब्रेस्ट में दूध बनने की क्षमता में कमी आ सकती है. डिहाइड्रेशन से दूध की मात्रा में कमी आती है और लेट-डाउन रिफ्लेक्स में भी बाधा पड़ती है.
इसे भी पढ़ें: आख़िर कैसी होनी चाहिए ब्रेस्टफ़ीडिंग मॉम्स की डाइट?
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नई माँओं में अक्सर ब्रेस्टफ़ीडिंग स्किल्स नहीं होती जिससे ठीक से लैचिंग ना हो पाना, बच्चे को पकड़ने की सही टेक्निक और निप्पल को उसके मुँह में देने की समझ आने में वक़्त लगता है. इस वजह से भी बच्चा पर्याप्त दूध नहीं पी पाता और ब्रेस्टमिल्क घटने लगता है.
इसे भी पढ़ें: Natural Remedies for Cracked Nipples in Hindi | क्रैक्ड निप्पल्स से राहत पाने के नेचुरल उपाय
कुछ ऐसे साइकोलॉजिकल कारण भी होते हैं जिनसे माँ के मिल्क प्रोडक्शन में कमी आ सकती है; जैसे
नेगेटिव इमोशंस जिसमें गिल्ट या निराशा से जुड़ी भावनाएँ माँ के कॉन्फ़िडेंस को कम कर देती हैं.
पोस्टपार्टम डिप्रेशन से जूझ रही महिलाओं को भी ब्रेस्टफ़ीड कराने में रुचि कम हो सकती है.
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बॉडी इमेज और शर्म से जुड़ी हुई सोच के कारण भी कई माँ पब्लिक में फ़ीड कराने से कतराती हैं और इस वजह से ब्रेस्ट फ़ीडिंग कम हो जाती है.
परिवार या दोस्तों के सपोर्ट की कमी से अलग-थलग महसूस करना भी इसका एक कारण हो सकता है.
पहले कभी ब्रेस्ट फ़ीड से जुड़ा हुआ कोई दर्दभरा अनुभव या ठीक से फ़ीड ना करा पाने का डर भी माँ की ब्रेस्टफ़ीड कराने की इच्छा और क्षमता को प्रभावित कर सकता है.
एंजायटी या पूर्व की कोई ट्रौमेटिक सिचुएशन भी स्ट्रेस की भावनाओं को बढ़ाती हैं जिसका मिल्क प्रोडक्शन से सीधा संबंध है.
लेक्टेशन फेलियर (lactation failure in Hindi) के कुछ मेडिकल कारण भी होते हैं; जैसे-
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पॉलीसिस्टिक ओवरी सिंड्रोम (PCOS), हाइपोथायरायडिज्म (hypothyroidism) या हाइपरप्रोलैक्टिनीमिया (hyperprolactinemia) जैसी स्थितियां मिल्क प्रोडक्शन को कम कर सकती हैं.
ग्लैंडुलर टिश्यू दूध ना बनने के दूसरा बड़ा कारण है.
एंटीहाइपरटेन्सिव (antihypertensives), गर्भनिरोधक (contraceptives) और डीकॉन्गेस्टेंट (decongestants) दवाएँ मिल्क प्रोडक्शन या लेट-डाउन रिफ्लेक्स को प्रभावित कर सकती हैं.
मोटापे से होने वाले हार्मोनल इंबैलेंस के कारण भी मिल्क प्रोडक्शन में कमी आती है.
प्री मैच्योर बर्थ होने पर भी दूध बनने में देरी हो सकती है.
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माँ की अधिक उम्र भी ब्रेस्ट टिशूज़ डेवलपमेंट पर असर डालती हैं जिससे दूध में कमी आ सकती है.
इसे भी पढ़ें: Breast engorgement meaning in Hindi | ब्रेस्ट एंगॉर्जमेंट क्या होता है? जानें इसके लक्षण और कारण
आइये अब बात करते हैं लेक्टेशन फेलियर (lactation failure in Hindi) या दूध न उतरने की समस्या को ठीक करने के बारे में.
ध्यान दें कि बच्चा ब्रेस्ट को ठीक से पकड़े और मुँह खोलकर निप्पल और एरोला को कवर करें. इसके अलावा बच्चे को क्रैडल होल्ड, फुटबॉल होल्ड, या साइड से लेटकर दूध पिलाने से फ़ीडिंग में हेल्प मिलती है.
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बच्चे को एक नियमित अंतराल पर दूध पिलाते रहें जिससे ब्रेस्ट खाली होती रहेंगी और दूध बनाने की प्रोसेस चालू रहेगी.
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ब्रेस्टफ़ीडिंग के दौरान माँ और बच्चे का स्किन-टू- स्किन कॉन्टैक्ट से उनके बीच इमोशनल बॉंडिंग बढ़ती है, जिससे दोनों को रिलेक्स रहने में मदद मिलती है.
जब बच्चा अच्छे से दूध नहीं निकाल पाए तो ऐसे में ब्रेस्ट को हल्के से दबाने पर मिल्क फ़्लो बढ़ता है जिसे बच्चा ठीक से दूध पी पाता है. इसके अलावा बीच- बीच में ब्रेस्ट की पंपिंग करते रहने से ब्रेस्ट खाली होती रहती हैं और इससे दूध बनने की प्रोसेस धीमी नहीं पड़ती.
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लेक्टेशन फेलियर होने पर परेशान ना हों और दिये गए टिप्स को आज़माएँ. ख़ास तौर पर ब्रेस्ट पंप से दोनों स्तनों को रेगुलर स्टिम्युलेशन दें जिससे ज़रूर फ़ायदा मिलेगा. लेकिन अगर फिर भी दिक्कत बनी रहे तो डॉक्टर की सलाह लेनी चाहिए.
1. Mehta A, Rathi AK, Kushwaha KP, Singh A. (2018). Relactation in lactation failure and low milk supply.
2. Mathur GP, Chitranshi S, Mathur S, Singh SB, Bhalla M. (1992). Lactation failure. Indian Pediatr.
3. Newman J, Wilmott B. (1990). Breast rejection: a little-appreciated cause of lactation failure.
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Kavita Uprety
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