

Baby Care
28 June 2023 को अपडेट किया गया
क्लॉथ डायपर (Cloth diaper) बेबी और पेरेंट्स के लिए हर लिहाज़ से फ़ायदेमंद है. क्लॉथ डायपर बेबी की नाज़ुक त्वचा के अनुकूल होते हैं. इससे बेबी की त्वचा पर जलन और रैशेज की समस्या काफ़ी हद तक कम हो जाती है. वहीं, ये किफ़ायती भी होते हैं. एक बार ख़रीदने के बाद आप इन्हें कई बार इस्तेमाल कर सकते हैं. इतना ही नहीं, क्लॉथ डायपर की मदद से बेबी के लिए टॉयलेट ट्रेनिंग को आसान भी बनाया जा सकता है. इस आर्टिकल के ज़रिये हम आपको क्लॉथ डायपर और टॉयलेट ट्रेनिंग के कनेक्शन के बारे में डिटेल में बताएँगे. साथ ही, कुछ ऐसी टिप्स शेयर करेंगे, जिससे आप बेबी के लिए टॉयलेट ट्रेनिंग को आसान बना सकते हैं.
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एक स्टडी के मुताबिक साल 1950 से पहले लगभग 95% बच्चे 18 माह की उम्र तक पॉटी ट्रेनिंग के लिए तैयार हो जाते थे. लेकिन अब ऐसा नहीं है. आज के समय में बेबी को पॉटी ट्रेनिंग में लगभग 36 माह तक का भी समय लग जाता है. इसके पीछे कई कारण हो सकते हैं. इनमें से एक है डिस्पोजेबल डायपर्स का अधिक इस्तेमाल होना. मानाकि डिस्पोजेबल डायपर्स बेबी और पेरेंट्स की लाइफ को आसान बना देते हैं. लेकिन वहीं इसके कारण बच्चे पॉटी ट्रेनिंग में देरी करते हैं. दरअसल, डिस्पोजेबल डायपर्स की ख़ास बात यह होती है कि यह बच्चे के लंबे समय तक ड्राई रखते हैं. इसके कारण बच्चे को पता ही नहीं चलता है कि उसका डायपर गंदा हुआ है और न ही उसे किसी भी तरह का डिसकंफर्ट होता है. वहीं, क्लॉथ डायपर्स के मामले में ऐसा बिल्कुल भी नहीं होता है. आमतौर पर 3 से 4 घंटे में कपड़े से बने डायपर्स गीले हो जाते हैं, जिसके बाद बच्चा पेरेंट्स को डायपर बदलने के लिए कई तरह के संकेत देता है. यही कारण है कि क्लॉथ डायपर्स से बच्चे को जलन और रैशेज होने की संभावना भी काफ़ी हद तक कम हो जाती है.
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बच्चे को कई तरह से पॉटी ट्रेनिंग दी जा सकती है. लेकिन आप उन तरीक़ों को अपनाएँ जिसमें आप और आपका बच्चा कंफर्टेबल महसूस करता है. आपकी सुविधा के लिए हम यहाँ पर कुछ आसान टिप्स का ज़िक्र करने जा रहे हैं!
सबसे पहले तो आप अपने बच्चे के लिए एक रूटीन बना दें; जैसे- आप दिन में कुछ घंटे के अंतराल में उसे टॉयलेट सीट पर बैठने की आदत डालें. कम से कम 10 मिनट के लिए बच्चे को टॉयलेट सीट पर बैठने दें. रोज़ ऐसा करने से बच्चे को इस रूटीन की आदत हो जाएगी.
बच्चे को पॉटी या टॉयलेट ट्रेनिंग देने के दौरान आपको उसके कुछ संकेतों पर ग़ौर करना होगा. अगर आप बच्चे के इन संकतों को समझ जाते हैं, तो आपके लिए बच्चे को पॉटी ट्रेनिंग देना बहुत ही आसान हो जाएगा. ये संकेत कुछ इस तरह से हो सकते हैं;
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अपने बच्चे के लिए पॉटी सीट का उपयोग करें. इसकी मदद से बच्चे की टॉयलेट ट्रेनिंग बहुत ही आसान हो जाती है. इसलिए अपने बच्चे के लिए कंफर्टेबल पॉटी सीट को चुनें.
अपने बच्चे को ऐसे कपड़े पहनाएँ जिन्हें आसानी से निकाला जा सके. बच्चे के लिए सही कपड़े चुनकर आप उसके लिए टॉयलेट या पॉटी ट्रेनिंग को आसान बना सकते हैं.
ध्यान रखें कि बच्चे किसी भी काम से बहुत जल्दी बोर हो जाते हैं. इसलिए आप पॉटी ट्रेनिंग की इस प्रोसेस को दिलचस्प और मज़ेदार बनाएँ. आप इस दौरान उसे कोई कहानी या गाना सुना सकते हैं.
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जब भी बच्चा पॉटी आने पर आपको संकेत दे या पॉटी सीट का इस्तेमाल करे, तब आप उसकी तारीफ़ करें. ऐसा करने से बच्चा पॉटी सीट का उपयोग करने के लिए प्रोत्साहित होगा.
अपने बच्चे की डाइट का विशेष तौर पर ध्यान रखें. उसकी डाइट में फाइबर की मात्रा को अधिक रखें और अधिक पानी पिलाते रहें. ऐसा करने से बच्चे को कब्ज़ की परेशानी नहीं होगी. ध्यान रखें कब्ज़ की समस्या होने पर बच्चे के लिए पॉटी ट्रेनिंग मुश्किल हो सकती है.
इस समय आपका बच्चा हर एक चीज़ को सीख रहा है. इसलिए अगर बच्चा डायपर गंदे कर देता है या आपको पॉटी आने पर कोई संकेत नहीं देता है, तो उस पर गुस्सा न करें; बल्कि उसे प्यार से समझाएँ कि पॉटी आने पर उसे किस तरह आपको बताना है.
अगर आप भी अपने बच्चे को सही तरीक़े से पॉटी ट्रेनिंग देना चाहते हैं, तो ऊपर बताए गए टिप्स को ज़रूर फॉलो करें!
बच्चे को पॉटी ट्रेनिंग देना इतना आसान नहीं होता है. इस समय आपको बहुत धैर्य रखने की ज़रूरत होती है. ध्यान रखें इस समय बच्चा आपके व्यवहार से बहुत कुछ सीखता है, इसलिए उसे अपनी बात बहुत प्यार से समझाने की कोशिश करें.
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Priyanka Verma
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