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Care for Baby
4 August 2023 को अपडेट किया गया
माइलो प्लैटफ़ार्म पर कई माओं द्वारा अक्सर ग्राइप वॉटर को लेकर सवाल पूछे जाते हैं जैसे कि क्या छोटे बच्चों के लिए होते हैं? क्या बच्चों को इसे पिलाना सेफ है इसे कब और कैसे दें जैसे कई सारे सवाल. तो इस पोस्ट में बात करेंगे ग्राइप वाटर फॉर बेबी के विषय पर.
आइये सबसे पहले जान लेते हैं इसके फायदे और नुकसान.
डाईजेशन में सहायक - छोटे बच्चे कई बार दूध नहीं पचा पाते और उल्टी करने लगते हैं जिससे उन्हें अपच हो सकती है. ग्राइप वॉटर से इस समस्या में राहत मिलती है.
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गैस से छुटकारा - इन्फ़ेंट्स को अक्सर पेट की गैस के कारण काफी परेशानी होती है. ऐसे में ग्राइप वॉटर गैस से भी छुटकारा दिलाता है. केवल इतना ही नहीं बल्कि Gripe water ke fayde और भी हैं जो हम आपको आगे बताएँगे.
हिचकी- ऐसा माना जाता है कि छोटे बच्चों में ज्यादा हिचकी आने से बच्चे को पेट का आकार बढ़ जाता है. शिशु को ग्राइप वॉटर देने से हिचकी की समस्या से निजात मिलती है.
टीथिंग के दौरान मददगार - दांत निकलते हुए छोटे बच्चों को मसूढ़ों में दर्द, खुजली और यहाँ तक कि दस्त भी लग जाते हैं. ऐसे में ग्राइप वाटर इन सब समस्याओं का अकेला समाधान है.
डिहाइड्रेशन से बचाये – नवजात शिशु पहले 6 महीने तक मां का ही दूध पीता है और इसलिए अधिक गर्मी होने पर कई बार उसका मुंह और गला सूखने लगता है लेकिन ग्राइप वाटर से उसके शरीर में पानी की कमी कुछ हद तक पूरी की जा सकती है.
न्यूबौर्न या छोटे बच्चों के अच्छे डाइज़ेशन के लिए सदियों से हमारे बुजुर्गों द्वारा कुछ देसी जड़ी बूटी पर आधारित सप्लिमेंट्स प्रयोग किए जाते रहे हैं जो कौलिक और गैस की समस्या में काफी असरदार हैं. ऐसा ही एक सप्लिमेंट है ग्राइप वॉटर. कुछ खास हर्ब्स के प्रयोग से ग्राइप वाटर फॉर बेबी बनाया जाता है जिनमें से खास हैं मुलेठी, दालचीनी, सौंफ, लेमन बाम, अदरक, कैमोमाइल और डिल औइल. इन के साथ मीठा जैसे कि चीनी या मिश्री इत्यादि मिलायी जाती है.
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क्या बच्चों के लिए ग्राइप वाटर सुरक्षित है?
जी हाँ, यह बच्चों के लिए पूरी तरह से सुरक्षित है और एक महीने से ऊपर के बच्चे को आप इसे उचित मात्रा में देना शुरू कर सकती हैं.
छोटे बच्चों के लिए Gripe water ke fayde कई सारे हैं. बच्चे के पांच से छह महीने का होने पर जब बॉटल फीड या अन्न की शुरुवात करते हैं तब कभी-कभी यह ठीक से पच नहीं पाता जिससे गैस होने लगती है. इसी के कुछ समय बाद दांत निकलने का वक़्त आता है जिस दौरान बच्चे को बार बार लूज मोशन, पेट और मसूढ़ों में दर्द होता है. ऐसे में ग्राइप वाटर उल्टी, पेट फूलना, गैस, और पेट की कई सारी तकलीफों से राहत दिलाता है. क्योंकि सौंफ इसका मुख्य इंग्रिडिएंट है इसलिए पेट की सामान्य समस्याओं में यह बेहद असरदार होता है.
एक महीने से छोटे बच्चों को ग्राइप वॉटर नहीं देना चाहिए क्योंकि इतनी कम उम्र में बच्चों का डाइजेशन सिस्टम फुली डैवलप्ड नहीं होता है. हमेशा शुरू करने से पहले डॉक्टर की सलाह लें और बच्चे को कभी भी खाली पेट ग्राइप वॉटर न दें.
अपने बच्चे के लिए ग्राइप वॉटर खरीदने से पहले उस पर लिखे इन्सट्रकश्न्स व पूरी जानकारी पढ़ लें. ग्राइप वॉटर को हमेशा शिशु के दूध पीने या खाना खाने के 10 से 15 मिनट के बाद देना चाहिए. बौटल पर लिखे निर्देशों के अनुसार सही मात्रा में बच्चे को पिलायें. इसे सामान्यतः दिन में तीन बार तक दिया जाता है लेकिन शुरुवात में लगभग 5 एमएल की मात्रा दिन में एक बार ही दें और इसका असर देखने के बाद ही इसकी मात्रा को बढ़ायें.
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ग्राइप वॉटर शिशुओं के लिए सेफ है क्योंकि इसे प्राकृतिक जड़ी बूटियों से बनाया जाता है. लेकिन अलग अलग ब्राण्ड्स अलग तरह के ईनग्रिडिएंट्स को मिलाकर इसे बनाते हैं इसलिए आपको बच्चे के ऊपर इसके असर को बारीकी से देखना चाहिए. अगर इससे एलर्जी के लक्षण जैसे होंठों में सूजन, उल्टी होना, खुजली और आँखों से पानी आने जैसे लक्षण दिखाई देने लगें तो तुरंत ग्राइप वॉटर पिलाना बंद कर दें क्योंकि ऐसा इस ब्रांड द्वारा प्रयोग किए गए किसी ईनग्रिडिएंट्स के कारण हो सकता है.
ग्राइप वाटर का उपयोग करने से पहले बरती जाने वाली सावधानियां
हमेशा खरीदने से पहले इसमें मौजूद ईनग्रिडिएंट्स जरूर चैक कर लें.
किसी किसी ग्राइप वॉटर में कुछ मात्रा में एल्कोहल भी होता है. ऐसे में ना खरीदें.
अपने डॉक्टर से बच्चे की उम्र के अनुसार सही मात्रा पता करें.
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प्रयोग करने से पहले बोतल को अच्छे से हिला लें और इसे ड्रॉपर या टीस्पून से दें.
याद रखें कि इसे फॉर्मूला मिल्क के साथ मिला के बिलकुल भी ना दें. इससे सीरियस कैमिकल रिएक्शन हो सकता है.
एक बार बौटल खोलने के बाद, लेबल पर बताए गए समय के अन्दर ही उसका प्रयोग कर लें.
बच्चों की समस्याओं का एक अच्छा समाधान है लेकिन अगर आप अपने शिशु को ग्राइप वॉटर नहीं देना चाहते तो इसके कुछ प्राकृतिक विकल्प भी अपना सकते हैं. जैसे कि
बच्चे को गैस होने पर उसके पेट में सर्क्युलर मूवमेंट्स में मालिश करें. इससे गैस पास होने में मदद मिलती है.
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ब्रेस्ट फीडिंग मदर अपने आहार में गैस पैदा करने वाली चीज़ें ना खाएं जैसे कि मसालेदार खाना, ठंडी प्रकृति की फल और सब्जियाँ इत्यादि. इससे भी बच्चे को गैस नहीं बनेगी.
बच्चे के फॉर्मूला मिल्क के ब्रांड को बार बार ना बदलें।
दूध पिलाने के बाद बच्चे को हमेशा डकार दिलाएँ.
बच्चे को ठंड से बचाएं.
तो ये थे .आप भी इसे आजमायें और अपने बेबी को गैस और पेट की समस्याओं से छुटकारा दिलायें.
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Written by
Priyanka Verma
Priyanka is an experienced editor & content writer with great attention to detail. Mother to an 11-year-old, she's a ski
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